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________________ २०८ / योग-प्रयोग-अयोग स्थिर हो जाता है। उसे ही ज्ञानी भगवन्तों ने ध्यान कहा है ! और जब यह चित्त अनवस्थित होता है तब वह तीन विभागों में विभक्त होता है - (१) भावना, (२) अनुप्रेक्षा और (३) चिन्ता । भावना चल चित्त को स्थिर करने का प्रथम प्रकार है भावना । भावना अर्थात् ध्यानाभ्यास की क्रिया । भावना की स्थिति ध्यान के अध्ययन काल में अर्थात ध्यान के प्राथमिक काल में तथा अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् एकाग्रता की स्थिति होने पर होती है। ध्यान की ऐसी स्थिति को भावना कहते हैं । ___भोक्ता की भावना से ही भोगेच्छाएँ उत्पन्न होती हैं, भोक्ता के आश्रय से ही भावना पुष्ट होती है। भोक्ता में पूर्वक्रित संस्कार से इच्छा और वासनाएँ अंकित होती हैं, वहीं वासनाएँ पुनः इच्छाओं का हेतु बन जाती हैं । भावना ही ध्यान-साधना का अभ्यास है। अभ्यास काल में ही ज्ञाता सुख-दुख के संवेदन की अनुभूति को पाता है। सुख-दुख को भोगता है। ज्ञाता घटना को जानता है भोगता नहीं । जहाँ केवल जानने की बात आती है, वहाँ भावना शुद्ध हो जाती है और ध्यान सधता जाता है। अनुप्रेक्षा चित्त की द्वितीय अवस्था अनुप्रेक्षा है – जो भी तत्त्व का ज्ञान प्राप्त किया है उसका स्मरण, मनन, चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। ध्यान अतर्मुमुहूर्त से अधिक रह नहीं सकता । अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् साधक ध्यान से चलित हो जाता है। ऐसी स्थिति में तत्व चिन्तन में स्थित होना अनुप्रेक्षा कहा जाता है। जैसे संसार की अनित्यता का, स्वतः की एकत्त्वता का, जीवों की अशरण अवस्था का, संसार की विचित्रता का इत्यादि विषय का चिन्तन अनुप्रेक्षा कही जाती है । चिन्ता चित्त की तृतीय अवस्था है - चिन्ता। चिन्ता अर्थात् भावना और अनुप्रेक्षा के अतिरिक्त मन की सम्पूर्ण व्यग्र अवस्था । यह चिन्ता नानाविध विषयों में फैली हुई परिस्पन्धनात्मक होती है । चिन्ता चित्त की वह अवस्था है जो बाहरी वातावरण और वृत्तियों से प्रभावित होती है। चंचलता स्वाभाविक नहीं है किन्तु बाह्य वातावरण और वृत्ति के योग से निष्पन्न है। अतः चंचलता का मूल हेतु ही वृत्तियाँ हैं । मनुष्य जो भी १. स्थिरमध्यवसानं तद्ध्यानम् (आवश्यकनियुक्तेरवचूर्णि गा. २ की टीका) २. ध्यानशतक गा.२ ३. नानार्थवलम्बनेन चिन्ता परिस्पन्दवती-सर्वार्थसिद्धि - ९/२७-७
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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