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________________ योग-प्रयोग-अयोग/ १९५ आगमोत्तरवर्ती आचार्य तो भावना योग के सम्बन्ध में और भी गहरे उतरे हैं। उन्होंने तो इस भावना लक्षी विविध पहलुओं पर विविध दृष्टियों से चिन्तन किया है और साधक जीवन पर पड़ने वाले उसके प्रभावों का विश्लेषण भी किया है। भावव्युत्पर्त्यय भाव शब्द की व्युत्पत्ति - षखंडागम की धवला टीका में "भावनं भावः या भूर्विवाभावः १' के रूप में और तत्त्वार्थ राजवार्तिक में 'भावनं भवतीतिवा भावः२ के रूप में प्राप्त होती है। भावशब्दार्थ एवं परिभाषा भाव शब्द का अर्थ है - विस्तार, अभिप्राय आचार्य शीलांकाचार्य ने भी 'भावश्चित्ताभिप्रायः' चित्त का अभिप्राय भाव बताया है। सूत्रकृतांग टीकाकार ने अन्तः करण की परिणति विशेष को भाव कहा है। शब्द जब मन द्वारा विचारों में बार-बार आप्लावित किया जाता है तब वही विचार भावना का रूप धारण कर लेता है। आवश्यकसूत्र की हरिभद्रीय - टीका में भावना का परिमार्जित स्वरूप बताते हुए आचार्यश्री ने लिखा है कि "जिसके द्वारा मन को भावित किया जाये। ५ उसे भावना कहते हैं। इसी भावना को आचार्य ने 'वासना ६कहा है। आचार्य मलयगिरि के शब्दों में "भावना को परिकर्म" कहा है। यह परिभाषा आचार्य हरिभद्रसूरि से मिलती-जुलती है। क्योंकि परिकर्म अर्थात् विचारों को बारम्बार भावना से भावित करना। "सतत् अभ्यास'' का सातत्य ही धीरे-धीरे भावना का रूप धारण करता है। इसी प्रकार क्रिया का सम्यक अभ्यास भावना के रूप में पाया जाता है। आगम में कहीं-कहीं भावना को अनुप्रेक्षा भी कहा गया है। स्थानांगसूत्र में ध्यान के प्रकरण में धर्मध्यान आदि की चार अनुप्रेक्षा बतायी गई हैं । वहाँ अनुप्रेक्षा का अर्थ भावना किया है। आचार्य उमास्वाति ने भी भावना के स्थान पर अनुप्रेक्षा शब्द का प्रयोग किया है१०1 १. धवला पुस्तक - ५/१, ७, १/१८४/१० तत्त्वार्थराजवार्तिक - १/५/२८/९ . आचारांग टीका - श्रु.१/अ. २/३, ५ ४. भावोन्तः करणस्य परिणतिविशेषः/सूत्रकृतांग टीका श्रु/अ. १५ बृहत्कल्प भाष्य, भा. २, गा. १२८५ की वृत्ति पृ. ३९७ आवश्यक सूत्र टीका ४ ७. अभिधान राजेन्द्र कोष भा. ५ पृ. १५०५ ८. बृहद्कल्पभाष्य भा. २. गा. १२९० वृत्ति ९. उत्तराध्ययन - अ. १२ वृत्ति .१०. तत्त्वार्थ सूत्र - ९१७
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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