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________________ १८८ / योग-प्रयोग-अयोग आत्मा की अनुभूति अध्यात्म ज्ञान से होती है। आत्मा का बन्धन और बन्धन की मुक्ति का उपाय जानने वाला आत्मज्ञानी कहलाता है। उपर्युक्त अध्यात्म की सर्व परिभाषाएँ जब उचित प्रवृत्ति रूप अणुव्रत, महाव्रत से युक्त होती हैं, आगमानुसार मैत्री आदि भावना से युक्त होती हैं और तत्व चिन्तन से संयुक्त होती हैं, तब अध्यात्म योग कहा जाता है। अध्यात्मयोग का स्वरूप योग्यतानुसार यथोचित धर्मप्रवृत्ति (तप, जप, पूजा, अर्चना, कायोत्सर्ग आदि) में जो प्रवृत्त होता है, उसे आत्मसंप्रेक्षण आत्महितबुद्धि या आत्मस्वरूप का बोध होता है। क्योंकि साधक को सन्मार्ग की ओर गतिशील कराने वाला परमतत्व का यथार्थ ज्ञान दर्शाने वाला, अध्यात्म ही एकमात्र परम उपाय है । ऐसा अध्यात्म प्रथम गुणस्थानावर्त अपुनर्बन्धक अवस्था से लेकर क्रमशः विशुद्ध विशुद्धत्तर और विशुद्धतम रूप धारण कर चतुर्दश गुणस्थान तक प्राप्त होता है अतः आत्मा के लिए जो भी शुद्ध अनुष्ठान किया जाता है जिनेश्वर भगवन्तो ने उसे अध्यात्म कहा है। ऐसा अध्यात्मभाव सामायिक छेदोपस्थापनीय रूप मोक्ष साधना योग में सर्वत्र व्याप्त होता है। अध्यात्म योग के बल से ही साधक को आत्मा और शरीर का अथवा जड़ या चेतन का गहरा और महत्त्वपूर्ण भेद ज्ञान प्राप्त होता है। योग की प्राथमिक. भूमिका पर आरूढ़ होने वाले साधक की अंतर्दृष्टि जब उजागर होती है तब अज्ञान समाप्त हो जाता है। इससे पूर्व अज्ञान का एकछत्र साम्राज्य रहता है। अंधकार ही अंधकार । सर्वत्र सघन अंधकार । केवल बहिर्दर्शन, केवल पौद्गलिकता में ही ममत्व की तरंगें । उन ममत्व की तरंगों के सामने कोई प्रतिरोधक शक्ति नहीं होती। उस अज्ञान अवस्था के सामने कोई रुकावट नहीं होती, कोई अवरोध नहीं होता। जैसे ही अंतर्दृष्टि खुलती है, ममत्व के समक्ष प्रतिरोध की शक्ति खड़ी हो जाती है और अज्ञानता टूट जाती है। अध्यात्मयोग का अर्थ है - आत्मसंयोग आत्मसाक्षात्कार । शरीर के बाहर का संयोग या शरीर के भीतर का संयोग अध्यात्मयोग नहीं है। चाहे हम शरीर को बाहरी ७.. योगबिन्दु - गा. ३५७ ८. योगबिन्दु - श्लो. ३८९ ६. योगबिन्दु - श्लो. ६८ १०. अध्यात्मसार - श्लो. ४ ११. अध्यात्मसार - श्लो. ३
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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