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________________ १६८ / योग-प्रयोग-अयोग अवंचक विधि यहाँ प्रवृत्तियाँ तीन हैं-(१) लक्ष्यताकना, (२) लक्ष्य को अनुसंधान पर्यन्त पहुँचाना और (३) कार्य की फलश्रुति। योगावंचक योगबीजों का संयोग, सद्गुरु का संयोग तथा मन की विशुद्धि का होना योगावंचक है। जैसे-निशान ताकने के लिए बाण का धनुष के साथ संयोग-अनुसंधान होना। क्रियावंचक सद्गुरु को भावयुक्त वंदन, नमस्कार एवं प्रणाम तथा वचन और शरीर की आगमानुसार प्रवृत्ति क्रिया अवंचक है। जैसे-निशान को अनुसंधान पर्यन्त पहुँचाने की क्रिया। फलावंचक उपर्युक्त सद्गुरु का संयोग तथा वंदन नमस्कार आदि से प्राप्त लाभ द्वारा कर्म क्षय तथा कार्य की फलश्रुति फलावंचक है। क्रिया वचक निशान को अनुसंधान पर्यन्त पहुँचाने पर भी किया का असाध्य रूप होना। फला-पंचक कार्य की फलश्रुति होने पर भी विफल होना। .. अनेक आकृति नं. ७ फल अलक्ष्य वंचक एक ही फल, निशानलक्ष्य अवंचक। क्रिया बंचक अवंचक योग का अवंचक फल अलक्ष्य योग वंचक अनेक पंचक वंचक -lol धनव
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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