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________________ [ xviii ] जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है - अध्यात्म योग । अध्यात्म योग की अवधि जैसे-जैसे विशुद्ध होती जाती है, भावना योग भावित होता जाता है, भावना जब अनुभव और साक्षात्कार का रूप धारण करती है तो ध्यानयोग का प्रारम्भ हो जाता है। ध्यानयोग की जागृति समत्वयोग और वृत्ति संक्षययोग को सफल करने में समर्थ है। महापुराण में योग का विश्लेषण अनेक स्थान पर पाया जाता है जिसका श्रेय नवीं शताब्दी के आचार्य जिनसेन को मिला है। ग्यारहवीं शताब्दी में तत्वानुशासन जैसे महान योग और ध्यान सम्बन्धी ग्रंथ का निर्माण करने वाले आचार्य रामसेन हुए हैं। उन्होंने ध्यान द्वारा व्यवहार तथा निश्चय दोनों प्रकार का मोक्षमार्ग सिद्ध किया है। इसी समय के शुभचन्द्राचार्य ने ज्ञानार्णव में योगमार्ग का निरूपण किया है, इस ग्रन्थ में काल का प्रभाव स्थान-स्थान पर दृश्यमान होता है जैसे जैन-योग को अष्टांग योग, हठयोग, तन्त्रयोग आदि से समानता कहाँ और कैसे है, सिद्ध किया है। आगम रूप धर्मध्यान को पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत चार आयाम में वर्गीकृत करके दर्शाया है। इस वर्गीकरण पर तन्त्रशास्त्र का प्रभाव अधिक रहा हो ऐसा परिलक्षित होता है। इसी ग्यारहवीं शताब्दी में सोमदेव सूरीकृत योगसार ग्रंथ की महान उपलब्धि जैन शासन को प्राप्त हुई है। यशस्तिलक चम्पू के अनेक कल्पों में योगविषयक चर्चा प्राप्त होती है। अतः ग्यारहवीं शताब्दी में ध्यान से पूर्व धारणा पद्धति का स्वरूप किस रूप से सिद्ध किया जा सकता है, इस विषय का प्रतिपादन किया है। योग विषय ग्रन्थ में आचार्य हेमचन्द्र का स्थान हरिभद्रसूरी की तरह सर्वत्र प्रसिद्ध है। बारहवीं शताब्दी में उन्होंने योगशास्त्र ग्रंथ का निर्माण करके जैन दर्शन में योग को सम्पूर्ण साधना पद्धति में प्रयोगात्मक किया है अतः योग का मार्ग योगशास्त्र से विविध रूप में प्राप्त हो सकता है। हेमचन्द्राचार्य स्वयं महान योगी थे वे घंटों तक कुंभक में प्रवचन देते थे। कुछ ही मिनट में ग्रन्थों का निर्माण करते थे ; ये ध्यान का प्रभाव है। चक्रस्थान पर कमल, मातृका और मन्त्र का ध्यान इनका प्रमुख विषय रहा है। तेरहवीं शताब्दी में अध्यात्मयोगी पं. आशाधर ने अध्यात्म रहस्य ग्रंथ की रचना की है। इसमें ग्रन्थकार ने आध्यात्मिक रहस्यों का सुव्यवस्थित रूप से उद्घाटन किया है।
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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