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________________ १३६ / योग-प्रयोग-अयोग द्रव्य कर्म जिन्दा है। भाव कर्म के प्रति जागृत होना ही हमारी साधना है, ध्यान है, जागृति है। इस प्रकार भाव कर्म राग और द्वेष के रूप में उभरते हैं और द्रव्य कर्म चंचलता का नर्तन करता है। इन कर्मों को रोकने के दो ही उपाय हैं- समभाव और स्थिरता। निर्विचार और निर्विकल्प की साधना करने से मन की चंचलता शान्त होती है। व्यक्त और अव्यक्त रूप से वाचिक मौन की साधना वाणी की चंचलता को स्थिर करती है। कायोत्सर्ग के विधान से काया की चंचलता कम होती है। मन, वचन और काया की चंचलता अल्प होते ही कर्म बन्ध की प्रक्रिया का परिवर्तिन होता है। समत्व की साधना प्रवाहित हो जाती है। साधना का सार ही समता है। कर्म के हेतु-आश्रव ___ आत्मा और कर्म पुद्गल दोनों स्वतन्त्र द्रव्य हैं । आत्मा कभी कर्म को आकर्षित नहीं करता किन्तु कर्म को आकर्षित करने का माध्यम है आश्रव । मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग आश्रव के पाँच हेतु हैं। १. मिथ्यात्व कर्मयोग में बाधक तत्व मिथ्यात्य है। सत्य को सत्य की दृष्टि से नहीं देखना, यथार्थ को यथार्थ की दृष्टि से नहीं परखना, अज्ञान है। जब जानने और देखने पर आवरण होता है तब मिथ्यात्व आता है। मिथ्यात्व के उदय से भोग को सुख मानता है। और त्याग को दुःख, त्याग में सुख और भोग में दुख की मान्यता को वह गलत मानता है। यह अवस्था बुद्धि की विपर्यास अवस्था है। इस अवस्था में सत्य को विपरीत ग्रहण किया जाता है ; जैसे आत्मा में देह बुद्धि स्वीकार करना । ज्यों-ज्यों देह बुद्धि सबल तथा स्थायी होती जाती है, भोगेच्छाओं की जिज्ञासा जागृत होती जाती है। २. अविरति कर्मयोग में बाधकतत्त्व है अविरति-अविरति अर्थात् गुप्त वासना, इच्छा, चाह, ईर्षा में मृगमरीचिका की तरह भोग में सुख को खोजना । संयोग की लालसा और वियोग में विवाद अनुकूल की प्राप्ति के लिए दौड़ धूप, प्रतिकूलता के नाश के लिए दौड़धूप, मान मिल गया खुश हो गया, अपमान मिला नाखुश हो गया। जहाँ पदार्थों के प्रति ममत्व, भोगेच्छा है वहाँ अविरति है और जहाँ ममत्व और भोगेच्छा का अभाव है, वहाँ विरति है। ३. प्रमाद कर्म योग में बाधक तत्व-प्रमाद भी है। भोगेच्छाओं की लालसा का तीव्र होना
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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