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१३२/ योग-प्रयोग-अयोग
भक्ति का चौथा नंबर ज्ञान का है। ज्ञानी वही होता है जो रागादि विक्षेपों से रहित शान्त चित्तवाला, सर्वज्ञ परमात्मा की नित्य भक्ति करने वाला और पूर्वोक्त तीनों प्रकार के उपासकों से विलक्षण कोटिवाला होता है। ऐसा साधक सदाशय वाला होने से, ब्रह्म स्वरूप के निकट पहुँचता है ।३०
योग एक विरक्ति है भक्ति में खोने की अभ्यास क्रम में अपने आपको खोजो भक्ति की लीनता एकाग्रता लाती है ? कैसी भक्तिः स्वार्थ या परमार्थ भक्ति की मस्ती स्वाभाविक या कृत्रिम भक्ति एक में है या अनेक में ।
३०. ज्ञानी तु शान्तविक्षेपों नित्यभक्तिविंशिष्यते ।
अत्यासन्नोहयसो भर्तुरन्तरात्मा सदाशयः ।
-वही गा. ५७२, पृ. ३३५