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________________ ११० / योग-प्रयोग-अयोग हेमचन्द्राचार्य के शब्दों में जहाँ मन है, वहाँ वायु है, और जहाँ वायु है वहाँ मन है। अतः समान क्रिया वाले मन और वायु क्षीर-नीर की भाँति आपस में मिले हुए हैं। फलतः प्राणायाम से बाह्य तेजस्विता ओजस्विता और प्राण होने पर भी निष्प्राण होने की सक्षमता का एक विराट रूप प्रज्जवलित होता है। प्राणायाम का लक्षण और भेद ___ मुख और नासिका के अन्दर संचार करने वाला वायु "प्राण" कहलाता है। उसके संचार का निरोध करना "प्राणायाम" है। "प्राणायामो भवेद् योगनिग्रहः शुभभावनः" मन, वचन और काय-इन तीनों योगों का निग्रह करना तथा शुभभावना रखना भी प्राणायाम है। प्राणायाम अर्थात् प्राणश्वास-प्रश्वास की गति उसका आयाम-विच्छेद अवरोध करना प्राणायाम है। बाहर की वायु को भीतर लेना श्वास है और भीतर की वायु को बाहर निकालना प्रश्वास कहलाता है। श्वास और उच्छवास की गति का निरोध करना "प्राणायाम" कहलाता है। महर्षियों ने प्राणवायु के विस्तार को भी प्राणायाम कहा है। उसके तीन अंग हैं । १२ प्राणायाम के अंग कोष्ठक नं.६ पुष्टि मात्रा लाभ १. पूरक-बाहर से वायु को अंदर खींचना आठ मात्रा २. रेचक-अंदर से वायु को बाहर फेंकना सोलह मात्रा व्याधियाँ क्षीण ३. कुम्भक-दोनों वायु का निग्रह करना बत्तीस मात्रा आन्तरिक शक्तियाँ जागृत इस प्रकार अनुलोम-विलोम प्राणायाम, शीतली प्राणायाम, केवल कुम्भक प्राणायाम, उज्जाई प्राणायाम, चन्द्र, प्राणायाम, सूर्य प्राणायाम, सूक्ष्म भस्त्रिका प्राणायाम इत्यादि प्राणायाम के अनेक प्रकार हैं। प्राण या विज्ञान प्राण एक यौगिक शक्ति है। तैजस शरीर और चैतन्य शक्ति का योग होते ही प्राण-शक्ति उत्पन्न होती है। प्राण के साथ गति, ध्वनि, स्पंदन क्रिया आदि की शक्ति ११. महापुराण-२१/२२७ १२. ज्ञानार्णव-२९/३
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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