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________________ ४. काम - वासना की मुक्ति का परम उपाय - ब्रह्मचर्य योग और ब्रह्मचर्य ब्रह्मचर्य का अर्थ मैथुन-निवृत्ति तो है ही, किन्तु उसका व्यापक अर्थ है इन्द्रिय और मन का निग्रह करना । जहाँ भी इच्छाओं का निरोध होता है वहाँ (इच्छानिरोधो तवो) तप कहा जाता है। ब्रह्मचर्य सभी तपों में उत्तम तप माना गया है। इसी तप के द्वारा शरीर बले, मनोबल और आत्मबल की वृद्धि होती है। कामाग्नि में जलते हुए कामी की कामना इसी तप से निर्जरित होती है। सम्पूर्ण दुःख का मूल स्रोत काम-वासना है । कामे कमाही, कामियं खु दुक्खं-दुःख से मुक्त होने का उपाय ब्रह्मयोग है। मन, वचन, और काया के शुभ योग से चिरपुरातन और समय-समय पर होने वाले नूतन कर्म अनेक आत्मा में ऐसी गहरी जड़ जमाए होते हैं कि उनका उन्मूलन करने के लिए जन्म-जन्मांतर में साधना करनी पड़ती है। अनुराम-विराग जैसी साधारण मनोवृत्तियाँ राग और द्वेष के बीज अंकुरित, पल्लवित, पुष्पित और फलित करती रहती हैं । ब्रह्मचर्य किसे कहते हैं ? "सूत्रकृतांग" की आचार्यशीलांक कृत संस्कृत टीका में सत्य, तप, दया, इन्द्रियनिरोध रूप ब्रह्म की चर्या-शुद्ध अनुष्ठान में केन्द्रित होना ब्रह्मचर्य कहा है। उमास्वाति के "तत्त्वार्थ सूत्र" ९-६ के भाष्य में गुरुकुल वास को ब्रह्मचर्य कहा ___ अणगार धर्मामृत में पर द्रव्य से रहित विशुद्ध आत्मा में जो लीनता होती है, उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं। भगवती आराधना के अनुसार जीव ब्रह्म है और शरीर सेवा से विरक्त होकर जीव में ही जो चर्या होती है उसे ब्रह्मचर्य कहा है३ पदमनंदि पंचविंशिका के अनुसार ब्रह्म शब्द का अर्थ निर्मल ज्ञान स्वरूप आत्मा और उसमें लीन होना ब्रह्मचर्य है। १. दश. अ. २ गा. ५ २. अणगार धर्मामृत ४/६० ३. भगवती आराधना ८७८
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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