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________________ [ix ] वैदिक परम्परा का प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद है । उसमें आधिभौतिक और आधिदैविक वर्णन ही मुख्य रूप से हुआ है। ऋग्वेद में योग शब्द का व्यवहार अनेक स्थलों पर हुआ है। किन्तु वहाँ पर योग का अर्थ ध्यान और समाधि नहीं है, पर योग का अर्थ जोड़ना, मिलाना और संयोग करना है। उपनिषदों में भी जो उपनिषद् बहुत ही प्राचीन हैं, उनमें भी आध्यात्मिक अर्थ में योग शब्द व्यवहृत नहीं हुआ है, किन्तु उत्तरकालीन कठोपनिषद, श्वेताश्वतर उपनिषद आदि में आध्यात्मिक अर्थ में योग शब्द का प्रयोग हुआ है। गीता में कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने योग का खासा अच्छा निरूपण किया है। योगवासिष्ठ ने भी योग पर विस्तार.से चर्चा की है। ब्रह्मसूत्र में भी योग पर खण्डन और मण्डन की दृष्टि से चिन्तन किया गया है। किन्तु महर्षि पतंजलि ने योग पर जितना व्यवस्थित रूप से लिखा उतना व्यवस्थित रूप से अन्य वैदिक विद्वान नहीं लिख सके। वह बहुत ही स्पष्ट तथा सरल है, निष्पक्षभाव से लिखा हुआ है। प्रारम्भ से अन्त तक की साधना का एक साथ संकलन आकलन है। पातजल योग सूत्र की तीन मुख्य विशेषताएँ हैं प्रथम, वह ग्रन्थ बहुत ही संक्षेप में लिखा गया है। दूसरी विशेषता, विषय की पूर्ण स्पष्टता है और तीसरी विशेषता, अनुभव की प्रधानता है। प्रस्तुत ग्रन्थ चार पाद में विभक्त है। प्रथम पाद का नाम समाधि है, द्वितीय का नाम साधन है, तृतीय का नाम विभूति है और चतुर्थ का नाम कैवल्य पाद है। प्रथम पाद में मुख्य रूप से योग का स्वरूप, उसके साधन तथा चित्त को स्थिर बनाने के उपायों का वर्णन है। द्वितीय पाद में क्रिया योग, योग के अंग, उनका फल, और हेय, हेतु, हान और हानोपाय इन चतुर्वृह का वर्णन है। तृतीय पाद में योग की विभूतियों का विश्लेषण है। चतुर्थ पाद में परिणामवाद की स्थापना, विज्ञानवाद का निराकरण और कैवल्य अवस्था के स्वरूप का चित्रण है। __ भागवत पुराण में भी योग पर विस्तार से लिखा गया है। तांत्रिक सम्प्रदाय वालों ने भी योग को तन्त्र में स्थान दिया है। अनेक तन्त्र ग्रन्थों में योग का विश्लेषण उपलब्ध होता है। महानिर्वाणतन्त्र और षट्चक्र निष्पण में योग पर विस्तार से प्रकाश डाला है। मध्यकाल में तो योग पर जन-मानस का अत्यधिक आकर्षण बढ़ा जिसके फलस्वरूप योग का एक पृथक सम्प्रदाय बना जो हठयोग के नाम से विश्रुत है। जिसमें आसन, मुद्रा, प्राणायाम प्रभृति योग के बाह्य अंगों पर विशेष बल दिया गया। हठयोग, प्रदीपिका, शिव-संहिता, घेरण्ड-संहिता, गोरक्षा-पद्धति, गोरक्ष-शतक, योग तारावली, बिन्दुयोग, योग-बीज, योग-कल्पद्रुम आदि मुख्य ग्रन्थ हैं । इन ग्रन्थों में
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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