SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योग-प्रयोग-अयोग/७१ है। इस प्रकार क्रिया से शोधन, शोधन से रूपान्तरण होता है, यह रूपान्तरण क्रमशः उपयोग वीर्य की अनुभूति को उजागर करता है। इस उपयोग वीर्य से मुक्ति वीर्य सहज प्राप्त होता है। वीर्य के प्रकार १. सलेश्य वीर्य-लेश्या अर्थात भिन्न-भिन्न अनुसंधान के योग से मन पर होने वाले परिणाम । ये परिणाम अनेक रूप में अभिव्यक्त होने पर भी हम शुभयोग रूप संकल्प शक्ति का उपयोग करें। इस शक्ति से शुभ लेश्याओं का द्वार खुलेगा, संकल्प शक्ति, साकार होगी और एकाग्रता में स्थिरता बढ़ेगी। संकल्प शक्ति एकाग्रता की शक्ति और अध्यात्म की शक्ति एक साथ होगी तब लेश्या का शुभलेश्या में रूपान्तरण हो जायेगा। मन, वचन और काय रूप योग परिणाम से लेश्या का परिणमन स्थित रहता है। अर्थात् तेरहवें गुणस्थानवर्ती केवली भगवन्त को भी योगवीर्य रूप लेश्या परिणाम प्रवर्तित होता है । सलेश्यवीर्य के तीन प्रकार होते हैं १. आवृत्त वीर्य-कर्म से आच्छादित वीर्य २. लब्धि वीर्य-वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम अथवा क्षय से प्रकट वीर्य ३. परिस्पंद वीर्य-लब्धि वीर्य में से जितना वीर्य मन, वचन और काययोग द्वारा प्रवृत्त हो।११ २. द्रव्य वीर्य-साधना में वीर्य का अत्यन्त महत्त्व है, बुरी आदतों की जड़ों को उखाड़ने का पुरुषार्थ द्रव्य वीर्य में है। हमारे आंतरिक जगत में घटित होने वाली घटनाएँ बड़ी जटिल होती हैं। जैसे बीमारी की जड़ में जम्स नहीं हैं, बीमारी की जड़ें हमारे भीतर से सम्बन्धित है । ये बीमारी की जड़ें हमारे वीर्य में हैं । भाव वीर्य की विशुद्धि जब तक विद्यमान रहेगी बीमारी आने का मार्ग ही नहीं रहेगा। वीर्य में गड़बड़ी होते ही रोग अपना सामना करने लगेगा । बाह्य स्थूल शरीर में अभिव्यक्त होने लगेगा। बाह्य जम्स तो निमित्त मात्र हैं । संयोग से मिल जाते हैं । शारीरिक और आत्मिक दोनों वीर्य तीन स्वरूप में जीवात्मा में जुड़े हुए हैं। १. सचित वीर्य-जीवधारी आत्मा का वीर्य २. अचित वीर्य-शरीर धारी आत्मा का जैसे आहार आदि का वीर्य ३. मिश्र वीर्य-अचित्त (जड़) से संयुक्त ऐसे जीव का जो वीर्य ११. कर्म प्रकृति श्लो. ४. की टीका
SR No.023147
Book TitleYog Prayog Ayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktiprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy