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________________ १६४ : पंचलिंगीप्रकरणम् वत्थुसहावो एसो देहतिभागूणजीवमाणेण। ईसीपब्भाराए उप्पि . ओगाहिया सिद्धा ।। ६६।। वस्तुस्वभावः एषः देहत्रिभागूनजीवमानेन। ईषत्प्राग्भाराया उपरिष्टादवगाढाः सिद्धाः।। ६६ ।। ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी पर रहते हैं सिद्ध-बुद्ध, ___ जहाँ है केवल मुक्त-भाव। अंतिम शरीर से त्रिभागन्यून आत्मप्रदेशों में, मुक्तात्मवस्तु का ऐसा स्वभाव ।। ६६ ।। ६६. (अपने अंतिम) शरीर के तीसरे भाग न्यून (दो-तिहाई आकार वाले)' आत्मप्रदेशों में ईषत्प्राग्भारा नामक सिद्धशिला पर सिद्ध रहते हैं, यह मुक्तत्मा का स्वभाव (लक्षण) है। भावार्थ : मुक्तात्मा (सिद्धात्मा या सिद्ध) का यह लक्षण है कि वे (अपने अंतिम) शरीर से तीसरा भाग न्यून आत्मप्रदेशों के प्रमाण से ईषत्प्राग्भारा नामक सिद्धशिला के ऊपर रहती है। १ १ - १/३ = २/३.
SR No.023142
Book TitlePanchlingiprakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Beliya
PublisherVimal Sudarshan Chandra Parmarthik Jain Trust
Publication Year2006
Total Pages316
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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