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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
को उत्तर कौशल के नाम से भी जाना जाता है। सरयू नदी के मध्य में होने के कारण कौशल जनपद उत्तर कौशल और दक्षिण कौशल दो भागों में विभक्त था। 164 कुणाल देश की राजधानी श्रावस्ती नामक नगरी थी। उस कुणाल देश में रूक्मि नामक राजा राज्य करता था । उसने अपनी पुत्री सुबाहुकुमारी का मज्जन महोत्सव खूब उत्सुकता से मनाया । 165
श्रावस्ती
कुणाल जनपद में श्रावस्ती नगरी थी । 166 यह इस जनपद की राजधानी थी। यह नगरी अचिरावती नदी के किनारे बसी थी । जैन सूत्रों में उल्लेख है कि इस नदी में बहुत कम पानी रहता था। इसके अनेक प्रदेश सूखे थे और जैन भिक्षु इसे पार करके भिक्षा के लिए जाते थे। भगवान महावीर ने यहाँ एक चातुर्मास किया था। श्रावस्ती बौद्धों का केन्द्र था । 167 पार्श्वनाथ के अनुयायी केशीकुमार और महावीर के शिष्य गणधर गौतम के बीच चातुर्याम और पंच महाव्रत को लेकर यहाँ ऐतिहासिक चर्चा हुई थी। 168
जिनप्रभसूरि के अनुसार यहाँ समुद्रवंशीय राजा राज्य करते थे, जो बुद्ध के परम उपासक थे। यहाँ कई किस्म का चावल पैदा होता था । श्रावस्ती महेठि नाम से कही जाती थी । 169 आजकल यह नगरी सहेट-महेट, जिला गोंडा में स्थित है। यहाँ बुद्ध की एक विशाल मूर्ति है, जिसके दर्शनार्थ बौद्ध उपासक श्रीलंका आदि दूर-दूर स्थानों से आते हैं।
जन- सन्निवेश
यद्यपि ज्ञाताधर्मकथांग में जन-सन्निवेश के स्वरूप एवं प्रकारों की कोई विस्तृत एवं विशद् विवेचना प्राप्त नहीं होती है लेकिन उनका नामोल्लेख होने के कारण अन्य ग्रंथों के संदर्भों से इनका विवेचन युक्तिसंगत होगा ।
ग्राम
ज्ञाताधर्मकथांग में 'ग्राम' शब्द का उल्लेख तो मिलता है, 17° लेकिन उसकी विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। भारतीय समाज में ग्राम का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत की आत्मा गाँवों में बसती है । 'ग्राम' शब्द 'ग्रस- ग्रहणे' धातु से ग्रसेरात् (उणादि सूत्र 1/142) सूत्र से मन् और धातु को आकारन्त होकर 'ग्राम' बनता है। अमरकोशकार 171 ने ग्राम और संवसथ को पर्याय माना है, अट्टादि (मार्केट) आदि से रहित स्थल को ग्राम कहते हैं ।
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