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________________ स्वकीयम् आप्त पुरुषों की अमरवाणी की अनाविल एवं अवितथ अभिव्यक्ति का नाम है- आगम, जिसमें परम सत्य यानी चरम लक्ष्य (मोक्ष) की प्राप्ति का अवसर प्राणिमात्र को प्रदान किया गया है। तीर्थंकर द्वारा अर्थ रूप में भाषित एवं गणधरों द्वारा ग्रंथ रूप में ग्रंथित एवं आगमकारों द्वारा सम्पादित, संशोधित, विज्ञापित एवं प्रचारित साहित्य आगम है, जिसमें दो परम्पराएँ हैं- श्वेताम्बर और दिगम्बर। श्वेताम्बर परम्परा में उपलब्ध द्वादशांगी में ज्ञाताधर्मकथांग का छठा स्थान है। साहित्य की सर्वप्रिय विधा का नाम है- कहानी। मेरी भी बचपन से ही कथाओं में रूचि रही है। ज्ञाताधर्मकथांग इसी कारण मेरे अध्ययन का विषय बना। ज्ञाताधर्मकथांग अर्धमागधी, प्राकृत की मिश्र गद्य शैली में विरचित है। विभिन्न कथाओं के माध्यम से जैन दर्शन, संस्कृति, समाज, राजनीति आदि का सुस्पष्ट विवेचन जैसा ज्ञाताधर्मकथांग में उपलब्ध होता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। मुझे इसके पठन (शोध नहीं) के पश्चात् लगा कि इसमें वर्णित विभिन्न सांस्कृतिक आयामों को जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया जाना काम्य और वांक्ष्य है। ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन' इसी दिशा में उठा एक कदम मात्र है। प्रबन्ध के उपशीर्षकों को सुस्पष्ट करने एवं पारम्परिक स्वरूप को अनावृत करने के लिए अन्य आगमों एवं आगेतर साहित्य का भी अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत कृति को नौ परिवर्तों में विभक्त किया गया है। प्रथम परिवर्त जैनागम एवं ज्ञाताधर्मकथांग' का उद्देश्य जैनागम परम्परा एवं उसमें ज्ञाताधर्मकथांग का स्थान स्पष्ट करना है। इसमें आगम शब्द के अर्थ, व्युत्पति, परिभाषाएँ, आगम वाचनाएँ, आगमों का वर्गीकरण व ज्ञाताधर्मकथांग का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय परिवर्त 'संस्कृति के तत्त्व एवं ज्ञाताधर्मकथांग' में तत्कालीन संस्कृति के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए संस्कृति शब्द का अर्थ, व्युत्पति, परिभाषा व तत्त्वों का सहारा लिया गया है।
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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