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________________ संस्कृति के तत्त्व एवं ज्ञाताधर्मकथांग संस्कृति की इस हस्तांतरणीयता में भाषा महत्वपूर्ण माध्यम है, क्योंकि भाषा के माध्यम से ही मनुष्य अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचाने का कार्य करता है। नई पीढ़ी अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ी के ज्ञान का लाभ लेती है, इसी हस्तांतरण के कारण ही संस्कृति का कोष निरन्तर बढ़ता जा रहा है। 4. संस्कृति की विशिष्टता प्रत्येक समाज का अपना अलग इतिहास, अपनी विशिष्ट परम्पराएँ एवं सामाजिक परिस्थितियाँ होती हैं और ये परम्पराएँ और परिस्थितियाँ ही उन समाजों को एक-दूसरे से पृथक करती हैं। इसी कारण यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक समाज की आवश्यकताएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। इन भिन्नताओं के कारण ही सांस्कृतिक भिन्नता हमें दृष्टिगोचर होती है, लेकिन मुरडॉक, बील्स और हाइजर आदि समाजशास्त्रियों का मानना है कि हमें संस्कृतियों में जो भिन्नता दिखाई देती है, वह भिन्नता केवल बाहरी ही है। मूल रूप में ऐसे तत्त्व बहुत कम होते हैं, जो सभी समाजों एवं व्यक्तियों में समान रूप से दिखाई देते हैं। व्यापक रूप में जो विशिष्टताएँ दिखाई देती हैं, एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति एवं समाज की अपनी विशिष्ट संस्कृति होती है। 5. सामाजिकता से अवगुंथित संस्कृति कभी भी व्यक्ति विशेष की देन नहीं होती अपितु वह तो समाज की देन होती है। समाज के कारण ही संस्कृति में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। समाज के अभाव में संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती है। संस्कृति के अभाव में समाज अंधा होता है और समाज के अभाव में संस्कृति अपंग होती है। रीति-रिवाज, परम्पराएँ, आचार-व्यवहार, धर्म, कला आदि ऐसे तत्त्व हैं जो किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, अत: कहा जा सकता है कि समाज और संस्कृति का आपस में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। 6. संस्कृति-आवश्यकताओं की सम्पूरक संस्कृति मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक है। मनुष्य की कई आवश्यकताएँ होती हैं, जिनमें सामाजिक, शारीरिक एवं मानसिक प्रमुख हैं। इनकी पूर्ति के लिए ही संस्कृति का निर्माण किया जाता है। संस्कृति का एक भी तत्त्व ऐसा नहीं होता है कि जिससे आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है। कोई भी सांस्कृतिक तत्त्व तभी तक अस्तित्व में रह पाता है 49
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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