SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृति के तत्त्व एवं ज्ञाताधर्मकथांग नहीं कहा जा सकता। स्वामी सत्यदेव के अनुसार "संस्कृति मानव को अन्तर्मुखी करके उसके सात्त्विक गुणों को प्रकट करती है।''19 स्वामी सत्यदेव ने संस्कृति के आध्यात्मिक पक्ष को ही उभारने की कोशिश की है जबकि संस्कृति व्यक्ति को अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी बनाने के साथ-साथ उसके सात्त्विक और अन्यान्य गुणों को भी अभिव्यक्त करती है। निकोलाई रोरिक के अनुसार ___ "संस्कृति प्रकाश की आराधना है, मानव का प्रेम है, वह सुगंध है, जीवन और सौन्दर्य की एकता है। वह ऊँचा उठाने वाली भावनात्मक योग्यताओं का समन्वय है। वह मुक्ति है, प्रेरक शक्ति है, वह हृदय है। संस्कृति क्रियात्मक शिव, ज्ञान की वेदी और रचनात्मक सौन्दर्य है।''20 निकोलोई ने भी संस्कृति को सिर्फ हृदय से जोड़ने की कोशिश की है जबकि संस्कृति हृदय और मस्तिष्क का संगम है। यह सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् का समन्वित रूप है। डॉ. राममूर्ति चौधरी के अनुसार "मानव समाज के विविध क्रियाकलापों तथा उनके प्रेरक मूल्यों एवं मान्यताओं की संज्ञा को संस्कृति कहते है।''21 डॉ. राममूर्ति की प्रस्तुत परिभाषा में संस्कृति के तीन महत्वपूर्ण तत्त्वों मानव के सामाजिक क्रियाकलापों, मूल्यों और मान्यताओं को ही संस्कृति कहा गया है, इस कारण प्रस्तुत परिभाषा संक्षिप्त लेकिन सारगर्भित कही जा सकती है। E.B. Tylor ___ "Culture is that complex whole which includes knowledge, belief, art, morals, law, custom and any other capabilities and habits acquired by man as a member of society."22 ___टायलर ने संस्कृति को विस्तार से परिभाषित किया है उन्होंने संस्कृति को जन्मजात न मानकर अर्जित माना है और इसकी हस्तान्तरणीयता को भी स्वीकार किया है। डॉ. व्हाइटहेड के अनुसार- ... "मानसिक प्रयास, सौन्दर्य और मानवता की अनुभूति का नाम संस्कृति 43 43
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy