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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन आगम में शुरू से अंत तक अनुगुंजित हो रहा है। किन्तु उसे हृदयंगम करने हेतु सरलतम उदाहरणों द्वारा समझाया गया है। षोडश अध्ययन : द्रौपदी
इस अध्ययन में भवपरंपरा का मार्मिक चित्रण करते हुए बताया है कि दुर्भावना के साथ जहर (तुंबा) का दान देने से नागश्री की भव परम्परा बहुत बढ़ जाती है। द्रौपदी के पूर्वभव, कुत्सित कार्यों से (नागश्री, सुकुमालिका), क्रूर कर्मों का बंध, स्थिति व उनके दारूण परिणाम के स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। इस अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि तत्कालीन ब्राह्मण समाज में श्रमणों के प्रति विरोध की जड़ें कितनी गहरी थी।
इसमें शतपाक, सहस्रपाक, जड़ीबूटियों से निर्मित तेल और औषधियों का उल्लेख हुआ है। गंगा की विशालता एवं नवीन नगर-निर्माण जैसी कला का वर्णन भी आया है। इसमें कच्छुल नारद की करतूत, प्राक्राम्यनि (गगन गामिनी) विद्या द्वारा विश्वभ्रमण, शीलधर्म की रक्षा के लिये पतिव्रता सती द्रौपदी की सूझबूझ, संकट के समय परिजनों का सहयोग, अपना कर्तव्य समझकर करना। बड़ों से शरारती मजाक स्वयं के लिये कितनी हानिकारक होती है। सप्तदश अध्ययन : आकीर्ण
आकीर्ण से तात्पर्य है- उत्तम जाति का अश्व । अश्वों के दृष्टांत के माध्यम से राग व आसक्ति को बंधन का हेतु बतलाया गया है। साथ ही यह भी बताया है विषयात्मक साधना भी किस प्रकार पथभ्रष्ट हो जाती है और दीर्घकाल तक भवभ्रमण बढ़ा लेते है। अनासक्त साधक ही स्वाभाविक असीम आनन्द (मोक्ष) को प्राप्त कर सकता है। प्रकरण को स्पष्ट करने के लिए अश्वों का एवं इन्द्रियों के विविध विषयों का इसमें विस्तृत निदर्शन किया गया है। अष्टादश अध्ययन : सुंसुमा
इस अध्ययन की मुख्य पात्र सुंसुमा धन्ना सार्थवाह की पुत्री थी। प्रतिशोध की आग को अपने भीतर दबाएँ चिलात ने एक दिन सुसुमा का अपहरण कर लिया तब धन्य श्रेणि नगर-रक्षकों व अपने पाँचों पुत्रों को साथ लेकर चिलात आदि 500 चोरों का पीछा करता है। 500 चोर भयभीत हो इधर-उधर भाग जाते हैं। चिलात भी घबराहट में चोर पल्ली का रास्ता भूलकर अन्यत्र रास्ते पर बढ़ता है। अंत में चिलात अपने बचाव के लिये सुंसुमा का सिर काटकर साथ में ले
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