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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन भी परिस्थिति में उससे च्युत नहीं होना चाहिए। नवम अध्ययन : माकन्दी इस अध्ययन में बताया गया है कि वासना से चंचल चित्त होने वाला साधक जिनरक्षित के समान अपने प्राण गंवाता है और स्थिरचित्त रहने वाला साधक जिनपालित की तरह सदा सुरक्षित रहकर अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है। यह कथा माता-पिता की आज्ञा का पालन करने की भी प्रेरणा देती है। इस अध्ययन में आज्ञा की अवहेलना करने के परिणाम का भयावह चित्रण किया गया है। ___ इस कथा में शकुन-अपशकून की बात आई है। 12वीं बार समुद्रयात्रा को अपशकुन माना है, किसी एक ही कार्य को 12 बार करना भी अनुचित माना गया है। दशम अध्ययन : चन्द्र इसमें चन्द्र के उदाहरण से यह प्रतिपादित किया है कि जैसे कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष का चन्द्र क्रमशः हानि-वृद्धि को प्राप्त होता है, वैसे ही चन्द्र के सदृश कर्मों की अधिकता से आत्मा की ज्योति मंद होती है और कर्मों की न्यूनता से ज्योति जगमगाने लगती है। एकादश अध्ययन : दावद्रव इस अध्ययन में सहिष्णुता के महत्व को प्रकट किया गया है। व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए सहनशील होना चाहिए। जो परिस्थितियों को सहन कर लेता है वह सफल हो जाता है अर्थात् भव को पार कर लेता है। इस पाठ में आराधक-विराधक की चर्चा की गई है। द्वादश अध्ययन : उदक ज्ञात इस अध्ययन में जल-शुद्धि की विधि के माध्यम से पुद्गलों के निरन्तर परिणमन की बात को स्पष्ट किया गया है। मंत्री और राजा के वार्तालाप के माध्यम से बतलाया गया है कि संसार का कोई भी पदार्थ एकान्तरूप से शुभ या अशुभ नहीं है। संसार का प्रत्येक पदार्थ शुभ से अशुभ में और अशुभ से शुभ में परिवर्तित होता है। अतः एक पर राग और दूसरे पर द्वेष नहीं करना चाहिए। 30
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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