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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन
क्रिया के आधार पर मरणकाल अनशन तप के दो भेद हैं
सविचार - इस तप में शरीर हिल-डुल सकता है।
अविचार - यह तप किसी भी प्रकार की शारीरिक चेष्टा से रहित होता है। मरणकाल अनशन तप के निम्नलिखित प्रकार भी उत्तराध्ययन सूत्र 255 में
मिलते हैं
(i) सपरिकर्म
इस तप में साधक दूसरों द्वारा सेवा करा सकता है। (ii) अपरिकर्म इसमें किसी भी प्रकार की सेवा नहीं की जा सकती है।
(iii) निर्हारी
(iv) अनिर्हारी
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यह तप ग्राम-नगर आदि में किया जाता है। इसमें मृत्यु के पश्चात् शव को बाहर निकालना होता है।
यह तप स्थान से संबंधित है अर्थात् पर्वत, गुफाओं एवं कन्दराओं में किए जाने वाले मरणकाल तप को निर्हारी कहा जाता है। इसमें मृत्यु के पश्चात् शव को हटाना नहीं पड़ता।
ज्ञाताधर्मकथांग में मेघमुनि द्वारा उपवास, बेला, तेला, चोला, पंचोला, अर्द्धमासखमण, मासखमण 256 तथा गुणरत्न संवत्सर तप257 तथा महाबल आदि सातों अनगारों द्वारा क्षुल्लक सिंह निष्क्रीड़ित 258, लघुसिंहनिष्क्रीड़ित - तप259 और महासिंह निष्क्रीड़ित तप260 करने का उल्लेख मिलता है।
2. ऊणोदरी तप
भूख से कम खाना, ऊणोदरी तप है। अधिक खाने से मस्तिष्क पर रक्त का दबाव बढ़ जाता है। परिणामतः स्फूर्ति कम हो जाती है और नींद आने लगती है। इसके अतिरिक्त अधिक खाने से वायुविकार आदि अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं। ऊनोदरीत बहुत उपयोगी है। इससे ब्रह्मचर्य की सिद्धि भी होती है तथा यह निद्रा विजय का साधन है। इसे अवमौदर्य भी कहते हैं । इसके द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यवचरक की दृष्टि से पाँच भेद हैं ।
ज्ञाताधर्मकथांग में मुनि शैलक 261 रूखा-सूखा आहार एवं सहज रूप से जितना मिलता है उतना ही आहार करते हुए देखे जा सकते हैं 1262 3. भिक्षाचर्या तप
भिक्षा द्वारा प्राप्त वस्तु से ही जीवन-यापन करना भिक्षाचर्या तप है । 263 ज्ञाताधर्मकथांग में मधुकर वृत्ति से थोड़ा-थोड़ा आहार सब घरों से लेना बताया
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