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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन गीइयं
इसका अर्थ है गीति छंद बनाना। मेघकुमार गीति में प्रीति वाला, गीत और नृत्य में कुशल हो गया।3 --- चुन्नजुतिं
चुनजुतिं का अर्थ है- चूर्ण, गुलाब, अबीर आदि बनाना और उनका उपयोग करना। ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न स्थानों पर इस कला का विविध रूपों में उल्लेख मिलता है। श्रेणिक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों से काला गुरु, कुंदुरुक्क, तुरुष्क (लोभान), श्रेष्ठ सुगंध के चूर्ण तथा धूप आदि जलान के लिए कहा।34 द्रुपद राजा ने भी उपर्युक्त पदार्थों से स्वयंवर मण्डप को सुरभित करने का आदेश दिया। आभरणविहिं
आभरणविहिं अर्थात् आभूषण बनाना और पहनना। ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित इस कला के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं- श्रेणिक राजा ने निपुण कलाकारों द्वारा निर्मित मणियों और सुवर्ण के आभूषण धारण किए 186 धारिणी देवी को विभिन्न आभरण पहनने का दोदह उत्पन्न हुआ जिसकी पूर्ति के लिए उसने नपुर, मणिजटित करधनी, हार, कड़े, अंगूठियां और बाजूबंद धारण किए। दीक्षा से पूर्व मेघकुमार को अट्ठारह लड़ों का हार, नौ लड़ों का अर्द्धहार, एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, प्रालंब (कंठी), पाद प्रलम्ब (पैरों पर लटकने वाला आभूषण), कड़े, तुटिक, केयूर, अंगद, मुद्रिकाएँ, कंदोरा, कुंडल, चूडामणि तथा मुकुट आदि गहने धारण करवाए।88 तरुणीपडिकम्म
___ इसका अर्थ है तरुणी की सेवा करना और प्रसाधन करना। अन्तःपुर की स्त्रियों द्वारा द्रौपदी को सब अलंकारों से विभूषित किया गया।" पुरिसलक्खणं
इसका अर्थ है पुरुष के लक्षण जानना।2 हयलक्खणं
इसका अर्थ है अश्व के लक्षण जानना। ज्ञाताधर्मकथांग में कालिकद्वीप के आकीर्ण अश्वों के लक्षणों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वे विशुद्धनिर्दोष, विनीत, प्रशिक्षित, सहनशील और वेगवान थे।
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