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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 71. निजीवं - जीवित को मृत करना। 72. सउणरुअमिति - काक-घूक आदि पक्षियों की बोली पहचानना
उपर्युक्त कलाओं में से कुछ कलाओं का ज्ञाताधर्मकथांग में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विस्तृत विवेचन मिलता है, जिनका उल्लेख इस प्रकार हैलेहं
ज्ञाताधर्मकथांग में लेखिका का वर्णन मिलता है। जब द्रौपदी अपने स्वयंवर मण्डप में जाती है तब लेखिका दासी भी उनके साथ मण्डप में जाती है।” कृष्ण वासुदेव ने सारथी दारुक के साथ पद्मनाथ को पत्र (लेहं) भेजा। गणियं
___ ज्ञाताधर्मकथांग में गणित विषयक विभिन्न तत्त्वों का उल्लेख मिलता है जिनमें माप-तौल की इकाइयाँ व अंक हैं। रूवं
__ अपनी विमल प्रभा से जीवलोक तथा नगरवर राजगृह को प्रकाशित करता हुआ दिव्य रूपधारी देव अभयकुमार के पास आ पहुँचा। कच्छुल्ल नामक नारद संक्रामणी अर्थात् दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की विद्या जानता था। यह विद्या रूप बदलने की कला की उपस्थिति प्रकट करती है।
नटुं
मेघकुमार के जन्मोत्सव पर श्रेणिक राजा ने नट (नड) आदि को अपनी कला प्रस्तुत करने के लिए बुलाया।" देवदत्ता गणिका नृत्य, गीत और वाद्य में मस्त रहती थी। नंदमणिकारी की चित्रसभा में नाटक करने वाले वेतन पर रखे हुए थे। नड (नट) शब्द का उल्लेख नाट्यकला का परिचायक है। गीयं
मेघकुमार गीति में प्रीतिवाला, गीत और नृत्य में कुशल हो गया। मेघकुमार के जन्मोत्सव व विवाहोत्सव पर मंगलगान गाए गए। लोकान्तिक देव तीर्थंकर मल्लीभगवती के दीक्षामहोत्सव से पूर्व नृत्य-गीतों के शब्दों के साथ दिव्य भोग भोगते हुए विचर रहे थे।36
लवकुश को स्वर ज्ञान से सम्पन्न” बताकर वाल्मीकि ने स्वर-संगीत के प्रचलन की ओर इंगित किया है।
संगीत के साहचर्य में नृत्यु का भी पर्याप्त सेवन किया जाता था। इसका
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