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ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा ज्ञाताधर्मकथांग की विभिन्न कथाओं में शिक्षण की विभिन्न प्रविधियों का उल्लेख मिलता है। जंबू-सुधर्मा के बीच अध्ययन-अध्यापन प्रश्नोत्तर प्रविधि से चलता है।” थावच्चापुत्र-सुदर्शन के मध्य संवाद, मल्ली व चोक्खा परिव्राजिका के मध्य वाद-विवाद भी शिक्षण प्रविधियों के रूप में प्रकट होते हैं।' सांख्य मतावलंबी शुक परिव्राजक सौगंधिका नगरी की परिषद में धर्मोपदेश देता है।80 चोक्खा परिव्राजिका ने भी मिथिला नगरी की परिषद् में सांख्यमत का उपदेश दिया, इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षण विधि के रूप में व्याख्यान प्रविधि भी प्रचलित थी।
ज्ञाताधर्मकथांग में लेखन-कला का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। जब द्रौपदी अपने स्वयंवर मण्डप में जाती है तब लेखिका दासी भी उसके साथ मण्डप में जाती है। इससे तत्कालीन समय की लेखन-कला के अस्तित्व का आभास तो होता है लेकिन लेखन सामग्री के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं मिलती है।
___ अभयदेवसूरि ने अपनी टीका में अट्ठारह लिपियों का नामोल्लेख कर तत्कालीन समय की लेखन-कला के अस्तित्व की धारणा को परिपुष्ट किया है।
प्राचीनकाल में मौखिक शिक्षा प्रदान की जाती थी। तदन्तर लेखन उपकरणों का उपयोग किया जाने लगा जिसमें भोजपत्र, कमलपत्र आदि प्रमुख थे जिन पर मयूरपंख से लिखा जाता था। आज भी भारतीय पाठशालाओं में अनेकानेक नवीन लेखन उपकरणों के बावजूद कालिख पुती हुई काठ की पट्टी पर खड्डिया मिट्टी से लिखा जाता है।
शिक्षा के विषय
प्राचीन जैन सूत्रों में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का उल्लेख मिलता है। आचारंगचूर्णि में द्वादशांग को ही वेद कहा गया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति मैं वैदिक ग्रंथों के निम्नांकित शास्त्रों का उल्लेख है- चार वेदों में- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, छः वेदांगों में- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरूक्त और ज्योतिष, छ: उपांगों में-वेदांगों में वर्णीत विषय और षष्टि तंत्र (सांख्य शास्त्र) उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में चतुर्दश विषयों का उल्लेख मिलता है- छः वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र।88 छांदोग्योपनिषद् में इतिहास, पुराण, व्याकरण, श्राद्ध, कल्प, गणित, उत्पात ज्ञान,
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