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________________ सप्तम परिवर्त ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा प्राचीनकाल से मानव जीवन में शिक्षा का स्थान सर्वोपरि रहा है। ऋग्वेद में कहा गया है- 'उदु ज्योतिर्मतं विश्वजन्यम्' अर्थात् ज्ञान की ज्योति अमर और लोकहितकारी होती है। जैनागमों में भी ज्ञान की महिमा स्वीकार की गई है। उत्तराध्ययन के निम्नलिखित संवाद से ज्ञान के महत्व पर प्रकाश पड़ता है, शिष्य ने पूछा- "हे पूज्य! ज्ञान सम्पन्नता से जीव को क्या लाभ होता है ?"गुरु ने उत्तर दिया- "हे भद्र! ज्ञान सम्पन्न जीव समस्त पदार्थों का यथार्थभाव जान सकता है। यथार्थभाव जानने वाले जीव को चतुर्गतिमय इस संसार रूपी अटवी में कभी दुःखी नहीं होना पड़ता। जैसे- धागे वाली सूई खोती नहीं है उसी प्रकार ज्ञानी जीव संसार से पथभ्रष्ट नहीं होता और ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप तथा विनय के योग को प्राप्त होता है तथा स्व-परदर्शन को बराबर जानकर असत्य मार्ग में नहीं फंसता। हमारे पूर्वजों ने शिक्षा की इस आवश्यकता को समझते हुए सुदूर अतीत में शिक्षा की प्रभावी व्यवस्था की थी। प्रत्येक युग में दर्शन, न्याय, गणित, ज्योतिष, व्याकरण, कला आदि विविध शास्त्रों एवं ज्ञान के क्षेत्र में ऐसे मौलिक विचारक और विद्वान उत्पन्न हुए, जिनसे हमारा देश गौरवान्वित रहा है। यद्यपि प्राच्य शिक्षा पद्धति का मौलिक स्वरूप तो समस्त प्राचीनकाल में एक समान ही रहा लेकिन विभिन्न कालों, धर्मों और संस्कृतियों के प्रभाव से इसमें यत्किंचित परिवर्तन अवश्य होता रहा। ज्ञाताधर्मकथांग में शिक्षा के विविध पहलुओं से सम्बन्धित विवरण यत्र-तत्र विद्यमान है। शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान नहीं, वरन् बालक का सर्वतोमुखी विकास करना है। बालक को समाज की मान्यताओं, रीतिओं और रूढ़ियों से परिचित कराकर उसके आचरण को आदर्श रूप प्रदान करना तथा उसमें अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन लाना है। यदि शिक्षा विद्यार्थी के आचार-विचार अर्थात् व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं ला पाती तो वह 'शिक्षा' कहलाने की अधिकारिणी नहीं है। 'शिक्षा' शब्द (स्त्री) (शिक्ष+अ+टाप्) शिक्ष् धातु में टाप् प्रत्यय लगकर निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ किसी विद्या को सीखने एवं सिखाने की क्रिया या 206
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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