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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में राजनैतिक स्थिति ह्रास हुआ, आपराधिक वृत्तियाँ बढ़ने लगी, तब लोगों को राज्य और राजा की आवश्यकता महसूस हुई। इस प्रकार धीरे-धीरे राज्य परम्परा प्रारम्भ हुई । ज्ञाताधर्मकथांग काल तक आते-आते यह परम्परा सुदृढ़ हो चुकी थी । ज्ञाताधर्मकथांग के विभिन्न संदर्भों में चम्पानगरी", राजगृह 2, शैलकपुर, वीतशोका“, इक्ष्वाकुदेश, अंगदेश", काशीदेश 7, कुणालदेश", कुरुदेश”, पंचाल, मिथिला, तेतलिपुर " अहिच्छत्रा", काम्पिल्यपुर", हस्तिनापुर, शुक्तिमती", हस्तीशीर्ष 7, मथुरा, कौण्डिन्य”, विराटनगर, अमरकंका", पाण्डुमथुरा ?, पुण्डरीकिणी, द्वारिका आदि राज्यों का उल्लेख मिलता है । राज्य के सप्तांग ज्ञाताधर्मकथांग में राज्य के सप्तांग के रूप में - 1. राज्य (शासन), 2. राष्ट्र, 3. कोष, 4. कोठार ( अन्न भण्डार), 5. बल (सेना), 6. वाहन, 7. पुर (नगर) और 8. अन्त: पुर का नामोल्लेख मिलता है । अभयकुमार राजगृहनगर के इन सप्तांगों की देखभाल करता था । 85 1. राज्य का अर्थ शासन, 2. राष्ट्र का अर्थ देश है, 3. कोष शब्द का अर्थ लक्ष्मी का भण्डार है, 4. धान्यगृह का नाम कोठार है, 5. हस्ती, अश्व, रथ एवं पदातियों के समुदाय का नाम बल है, 6. शिविका आदि व भार को ढोने वाले खच्चर - गधा आदि का नाम वाहन है, 7. नगर का अर्थ पुर है, 8. राज - स्त्रीजन जहाँ निवास करती है, उस स्थान का नाम अन्तःपुर है 186 राज व्यवस्था ज्ञाताधर्मकथांग काल में राजा ही राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था, अतः राजव्यवस्था राजा के इर्द-गिर्द घूमती थी । राज-व्यवस्था में विक्रेन्द्रीकरण के अभाव के कारण भ्रष्टाचार व अनैतिकता का बोलबाला था । ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि धन और कन्या का अपहरण होने के पश्चात् जब धन्यसार्थवाह नगर-रक्षकों के समक्ष फरियाद करने जाता है तो उसे बहुमूल्य भेंट लेकर जाना पड़ता है। इसके सिवाय उसे यह भी कहना पड़ता है कि चोरों द्वारा लूटा गया माल तुम्हारा होगा, मुझे केवल अपनी पुत्री चाहिए। धन्य सार्थवाह के ऐसा कहने पर नगर-रक्षक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर जाते हैं और चोरों को परास्त करते है, मगर चुराया हुआ धन जब उन्हें मिल जाता है तो वहीं से वापिस लौट आते हैं। सुंसुमा कन्या को छुड़ाने के लिए वे कुछ नहीं करते, मानों उन्हें धन की ही चिन्ता थी, लड़की की नहीं ।" इसी तरह धन्य सार्थवाह अपने पुत्र देवदत्त 193
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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