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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 5. गन्धवा- (गन्धर्व गायक) 6. कासवगा- (नाई) 7. मालाकारा- (माला बनाने वाले) 8... कच्छकारा- (माली)
तम्बोलिया- (ताम्बूल- पान बेचने वाला) चम्मरू- (चर्मकार)
जंतपीलग- (कोल्हू आदि चलाने वाले) 12. गंछिय- (अंगोछे बनाने वाले) 13. छिपाय- (कपड़े छापने वाले)
कंसवारे- (ठठेरे- बर्तन बनाने वाले) 15. सीवग- (दर्जी) 16. गुआर- गोपाल (ग्वाले) 17. भिल्ला- (व्याघ्र, शिकारी) 18. धीवर- (मछुआरे)
-देखें जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र 2/37 ज्ञाताधर्मकथांग में इनके अतिरिक्त नट, नर्तक, रस्सी पर खेल करने वाले बाजीगर, मल्लयुद्ध करने वाले, मुष्टियुद्ध करने वाले, विदुषक, भांड, कथावाचक, रास गायक, वैद्य आदि पेशेवर कलाकारों का भी उल्लेख हुआ है, जो लोगों का मनोरंजन करके अपनी आजीविका चलाते थे।
-देखें जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र 1/1/153 विशेष शिल्पों अथवा व्यवसायों में लगे हुए लोगों के अलग गाँव ही बस जाते थे, यथा-वाणिज्यग्राम, निषादग्राम, कुम्हारग्राम, ब्राह्मणग्राम, क्षत्रियग्राम।'
जीविका की खोज में ये शिल्पी ग्रामानुग्राम घूमते रहते थे। सुवर्णकारों की श्रेणियाँ आवश्यकतानुसार न्याय की मांग के लिए राजसभाओं में भी जाती थी। ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि जब युवराज मल्लदिन ने क्रोधित होकर एक चित्रकार को मृत्युदण्ड दिया तो श्रेणी उसे समुचित न्याय दिलाने हेतु राजसभा में गई फलतः राजा ने मृत्युदण्ड के स्थान पर चित्रकार का संडासक (अंगूठा व उसके पास की अंगुली) काटकर उसे राज्य से निर्वासित कर दिया। अपने के अनुरूप कार्य न करने वाली श्रेणी को दण्ड भी मिलता था।
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