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________________ पंचम परिवर्त ज्ञाताधर्मकथांग में आर्थिक जीवन सामाजिक जीवन की धुरी है- आर्थिक सम्पन्नता। अर्थ जीवनरक्त के समान है, इसके बिना सांस्कृतिक अभ्युत्थान की कल्पना नहीं की जा सकती। अर्थाभाव के कारण मानव-जीवन अभिशाप बन जाता है। आवश्यकता (मांग) और उत्पादन (पूर्ति) के सामंजस्य-संतुलन पर टिकी है आर्थिक समृद्धि की नींव। ____ आगमकालीन भारतवर्ष आर्थिक दृष्टि से समुन्नत था। कृषि, उद्योग, व्यापार, पशुपालन, शिल्पकर्म में भी यह आर्यक्षेत्र प्रचुर प्रगति कर चुका था। इससे स्पष्ट है कि निवृत्तिमूलक जैन दर्शन के प्रतिपादक मनीषियों व चिन्तकों ने भी सद्कार्यार्थ अर्थार्जन पर बल दिया है। आलोच्य-ग्रंथ ज्ञाताधर्मकथांग में उपलब्ध अर्थव्यवस्था विषयक विवरण का निदर्शन इस प्रकार हैकृषि कृषि सम्पूर्ण अर्थ जगत के लिए आधार स्तम्भ है। इससे मनुष्यों और पशुओं के लिए भोजन और उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध होता है। यही कारण है कि कृषि प्राचीनकाल से उत्पादन के प्रमुख स्रोत के रूप में प्रतिष्ठित रही है। अहिंसा प्रधान जैन धर्म में भी कृषिकर्म निन्द्य नहीं है। स्थानांग में कम्पाजीवे अर्थात् कृषि आदि से आजीविका चलाने वाले को भी आजीवक के रूप में स्वीकार किया गया है। पाणिनि ने खेती की भूमि, जो अलग-अलग खण्डों में विभक्त रहती थी, को खेत कहा है।' सिंचाई-व्यवस्था अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए सिंचाई-व्यवस्था का विकसित होना आवश्यक है। तत्कालीन समय में किसान सिंचाई के लिए वर्षा पर अधिक निर्भर थे फिर भी कृत्रिम सिंचाई के लिए पुष्करिणी, बावड़ी, कुंआ, तालाब, सरोवर आदि निर्मित किए जाते थे। नन्दमणियार सेठ द्वारा नगर के बाहर एक बड़ी पुष्करिणी बनवाने का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है। कृषि उपकरण प्रश्नव्याकरण सूत्र से ज्ञात होता है कि उत्तम फसल के लिए कृषि के विविध उपकरणों का प्रयोग किया जाता था। इनमें हल, कुलिय, कुदाल, कैंची, 166
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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