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प्रथम परिवर्त जैनागम एवं ज्ञाताधर्मकथांग विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में भारतीय संस्कृति का अग्रणी स्थान रहा है। वैदिक, जैन व बौद्ध आदि विभिन्न परम्पराएँ इसी संस्कृति में पल्लवित-पुष्पित
हुई।
विश्व के प्रत्येक धर्म और परम्परा के सिद्धान्तों और आदर्शों को पृथक्पृथक् ग्रंथों में प्रतिपादित किया गया है। वैदिक परम्परा में 'वेद', बौद्धों में 'त्रिपिटक', ईसाइयों में 'बाइबिल', पारसियों में 'अवेस्ता' और मुस्लिमों में 'कुरान' ऐसे ही पवित्र 'धर्म-ग्रंथ हैं। इसी क्रम में जैन धर्मग्रंथों को 'आगम' कहा जाता है।
ज्ञान-विज्ञान के अक्षय भण्डार जैनागम साहित्य भारतीय साहित्य की अनमोल उपलब्धि, अनुपम निधि और अकूत खजाना है। अक्षर परिणाम से वह जितना विशाल है, उससे भी कहीं अधिक उसके चिंतन की गहराई है। आगम का अर्थ
आगम शब्द 'आ' उपसर्ग एवं 'गम्' धातु से निर्मित हुआ है। आगम्यन्तेपरिच्छिद्यन्ते अर्था अनेनेत्यागमः' जिसके द्वारा पदार्थों को जाना जाता है, उसे आगम कहते हैं। आचारांग में 'आगम' शब्द 'जानने' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। भगवतीसूत्र व स्थानांगसूत्र में आगम' शब्द शास्त्र के अर्थ में व्यवहृत हुआ है।
पाइअ-सद्द-महण्णओ में आगम का अर्थ शास्त्र या सिद्धान्त के रूप में किया गया है।
आप्त पुरुषों द्वारा कथित गणधरों द्वारा ग्रंथित
मनीषियों द्वारा आचरित आगम है आगम के पर्यायवाची
जैन परम्परा में प्राचीनतम ग्रंथों को सामान्यतया आगम कहा जाता है, परन्तु अतीत में ये ग्रंथ 'श्रुत' के नाम से भी प्रसिद्ध रहे हैं। स्थानांग सूत्र में आगमज्ञाताओं को 'श्रुतकेवली' व 'श्रुतस्थविर' कहा गया है। नन्दीसूत्र में
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