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ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन कराभूषण- ज्ञाताधर्मकथांग कालीन समाज में प्रचलित कराभूषणों का वर्णन इस प्रकार हैi. अंगद-केयरू-बाजूबंद- ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार इन्हें स्त्री
पुरुष दोनों पहनते थे। राजा श्रेणिक प्रतिदिन स्नानादि करके सभी आभूषणों को धारण करता था, उनमें यह भी एक था।18 रानी धारिणी ने तैयार होकर उत्तम प्रकार के बाजूबंद धारण किए।319 राजकुमार मेघ को भी दीक्षा से पूर्व सभी अलंकारों के साथ केयुरअंगद को भी धारण करते हुए बतलाया गया है।320 ये स्वर्ण, मणि
और रत्नजड़ित होते थे।321 ii. कटक/तुटिक (कड़ा)- ज्ञाताधर्मकथांग में स्वर्ण और मणियुक्त
कड़ों का उल्लेख है।322 राजघराने में इन्हें पहनने का प्रचलन अधिक था। विशेष प्रसंगों पर स्त्री-पुरुष दोनों सभी आभूषण पहनकर
निकलते थे।323 iii. वीरवलय- यह भी हाथों में पहना जाने वाला विशेष आभूषण था,
जो संभवतः राजा आदि विशिष्ट लोगों द्वारा ही धारण किया जाता था। ज्ञाताधर्मकथांग में श्रेणिक द्वारा नाना भांति की मणियों, सुवर्ण
और रत्नों से निर्मित महामूल्यवान, सुरचित और प्रशस्त वीरवलय
धारण करने का उल्लेख मिलता है।324 iv. मुद्रिका- ज्ञाताधर्मकथांग में स्त्री-पुरुष दोनों के द्वारा दसों अंगुलियों
में मुद्रिका (अंगूठी) धारण करने का उल्लेख मिलता है।325 कटि आभूषण- ज्ञाताधर्मकथांग में वर्णित कटि आभूषण अग्रांकित हैंi. कटिसूत्र- राजा श्रेणिक326 और मेघकुमार327 द्वारा कटिसूत्र अर्थात्
कंदोरा धारण किए जाने का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथांग में मिलता है। ii. मेखला- ज्ञाताधर्मकथांग की धारिणी रानी ने मणिजटित28 और
कच्छुल्ल नारद में मूंज29 की मेखला यानी करधनी धारण कर रखी
थी। पदाभूषण- पैरों के आभूषण के रूप में ज्ञाताधर्मकथांग में एकमात्र नूपुर का उल्लेख हुआ है।30 धारिणी रानी उत्तम वस्त्र धारणकर पैरों में उत्तम नूपुर सहित सभी अलंकार धारण कर दोहदपूर्ति के लिए गई ।331 स्वयंवर
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