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________________ ज्ञाताधर्मकथांग में सामाजिक जीवन नारी की स्थिति जीवन रथ के दो पहियों- स्त्री और पुरुष के समन्वय से ही जीवन आनन्दमय बनता है। ज्ञाताधर्मकथांग की परिधि में आबद्ध नारी विविध रूपों में हमारे समक्ष उपस्थित होती है। माता के रूप में वह अत्यन्त सम्माननीय थी। तीर्थंकर की माता का देवता भी सम्मान करते हैं।205 माता अपने पुत्र से अत्यन्त स्नेह करती थी। माता धारिणी पुत्र मेघकुमार की दीक्षा की बात सुनकर मूर्छित हो गई।206 ज्ञाताधर्मकथांग में विमाता के प्रति भी सौम्य व्यवहार का आदर्श रूप सामने आता है। अपनी विमाता धारिणी की इच्छापूर्ति के लिए पुत्र अभय देवताओं से प्रार्थना करता है।207 ___ बहुपत्नी विवाह के कारण पत्नी का जीवन अपेक्षाकृत कम सुखमय था। पति यदा-कदा पत्नी से रूष्ट भी हो जाया करता था, लेकिन पत्नी सदैव उससे स्नेहपूर्ण व्यवहार किया करती थी। पति का प्रेम पुनः प्राप्त करने के लिए वह जादू-टोने का आश्रय भी लेती थी।208 पति अपनी पत्नी की हर इच्छा को यथासंभव पूर्ण करना अपना कर्त्तव्य समझता था। श्रेणिक ने धारिणी20 और धन्य सार्थवाह ने भद्रासार्थवाही10 की इच्छा पूर्ण की। गर्भिणी नारी की सम्पूर्ण कामनाओं को पति द्वारा पूरा किया जाता था।211 ___ उस समय पुरुष दीक्षा ग्रहण करते समय अपने माता-पिता की आज्ञा लेना आवश्यक समझते थे, लेकिन पत्नी से आज्ञा लेना अथवा मंतव्य जानना उनके लिए आवश्यक नहीं था। ज्ञाताधर्मकथांग में उल्लेख मिलता है कि मेघकुमार, धन्य सार्थवाह और थावच्चापुत्र ने अपनी-अपनी पत्नियों से आज्ञा लेना तो दूर उन्हें सूचित करना भी उचित नहीं समझा।212 पति के प्रभाव में नारी अपने श्वसुरगृह में रहती थी। वहाँ पर श्वसुर का पूर्ण नियंत्रण रहता था। योग्य वधू को वय में छोटी होने पर भी परीक्षण पर खरा उतरने पर गृहस्वामिनी बनाना नारी की प्रतिष्ठा का परिचायक है। धन्य सार्थवाह ने अपनी छोटी पुत्रवधू रोहिणी को गृहस्वामिनी पद पर प्रतिष्ठित किया।13 कन्या के रूप में नारी माता-पिता, भाई व सभी परिजनों के स्नेह की पात्र 131
SR No.023141
Book TitleGnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashikala Chhajed
PublisherAgam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
Publication Year2014
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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