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* अनुमोदना एवं अनुशंसा -
भगवतीसूत्र जैन आगम साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, पूर्व में इसके अनुशीलन का कार्य डॉ० जे.सी. सिकदर ने अंग्रेजी में किया था। उसके पश्चात् इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के अनुशीलन का शोधकार्य श्रीमती डॉ० तारा डागा ने किया। मुझे उनके इस शोध ग्रन्थ के परीक्षक होने का अवसर भी मिला था, और मैंने पाया कि यह अनुशीलन अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है, किन्तु दुर्भाग्य से उनका यह शोधप्रबन्ध पर्याप्त समय से अप्रकाशित ही था, जबकि आगमप्रिय हिन्दी भाषी जैन जनता को उनके इस ग्रन्थ की अति आवश्यकता थी। हमारे समाज का यह दुर्भाग्य है कि साहित्यिक एवं अनुशीलन की दृष्टि से अनेक अस्तरीय ग्रन्थ भी प्रकाशित हो जाते हैं और स्तरीय ग्रन्थ प्रकाशन की राह देखते रहते हैं। इस अवसर पर निश्चय ही प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, धन्यवाद की पात्र है, जिसने इस ग्रन्थ के प्रकाशन में सहयोगी बनने का दायित्व लिया है। ___मुझे यह जानकर अति प्रसन्नता हो रही है कि डॉ० तारा डागा का भगवतीसूत्र का दार्शनिक अनुशीलन' नामक यह शोधप्रबन्ध प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के सहयोग से प्रकाशित हो रहा है। भगवतीसूत्र निश्चय ही जैन आगम साहित्य में विविध विषयों की आकर के समान है। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ पर डॉ० तारा डागा ने जो अनुशीलनात्मक कार्य किया है वह भी अपने विषय की दृष्टि से न केवल महत्त्वपूर्ण कार्य है, अपितु एक स्तरीय कार्य भी है। मैं डॉ० तारा डागा के इस कार्य का प्रशंसक हूँ और ग्रन्थ प्रकाशन के अवसर पर अपनी ओर से उन्हें बधाई प्रस्तुत करता हूँ। मेरी दृष्टि में इस महत्त्वपूर्ण कार्य के प्रकाशन से न केवल विद्वत् जगत, अपितु जनसामान्य भी लाभान्वित होगा, क्योकि उन्हें हिन्दी भाषा में ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की विषय सामग्री सहज ही उपलब्ध हो जावेगी।
अन्त में पुन: मैं अपनी एवं प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर की ओर से डॉ० तारा डागा को एवं प्रकाशन संस्था प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर को धन्यवाद देता हूँ
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन