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(3) कहीं प्रश्न संक्षिप्त है तो उत्तर विस्तृत है।25 (4) कहीं कहीं फुटकर प्रश्न हैं26 तो कहीं एक ही प्रकरण से सम्बन्धित
प्रश्नोत्तर की श्रृंखला चलती है।” जैनागमों की तत्कालीन प्रश्नोत्तर पद्धति के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रश्नों का पुनरुच्चारण, फिर उत्तर में प्रश्न का दोहराना, तथा कभी कभी पुनः उत्तर का उपसंहार करते हुए प्रश्न को दोहराना आदि विशेषताएँ भी देखने को मिलती हैं। प्रश्नोत्तर में प्रायः प्रत्यक्ष शैली का ही प्रयोग हुआ है परन्तु कहीं-कहीं अप्रत्यक्ष शैली का प्रयोग भी देखने को मिलता है। कठिन विषयों को समझाने के लिए दैनिक जीवन के प्रसंगों व रूपकों का प्रयोग करते हुए उनका सरलीकरण किया गया है। कर्मरहित जीव की ऊर्ध्व गति को सूखी
मटर की फली तथा तुम्बा के उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया गया है। (7) जहाँ एक ही प्रश्न के एक से अधिक उत्तर-प्रत्युत्तर होते, वहाँ भगवान्
महावीर प्रश्नकर्ता की दृष्टि व भावना को ध्यान में रखकर स्वयं प्रति प्रश्न करके समाधान प्रस्तुत करते हैंपुव्विं भंते! अंडए? पच्छा कुक्कडी? पुव्विं कुक्कडी? पच्छा अंडए? रोहा! से णं अंडए कतो? भगवं! तं कुक्कुडीतो। स णं कुक्कुडीकतो? भंते! अंडगातो।
एवामेव रोहा! से य अंडए सा य कुक्कुडी, पुव्विं पेते, पच्छा पेते, दो वेते सासता भावा, अणाणुपुव्वी एसा रोहा! - (1.6.16) (8) प्रश्नोत्तर शैली में लिखे गये इस आगम में कुछ प्रकरण कथानक शैली में
भी लिखे गये हैं यथा- गोशालक का कथानक, महाबल का प्रकरण,
राजाउदायन का चरित, जमालिचरित आदि। (9) गद्यशैली में लिखे गये इस ग्रंथ में प्रतिपाद्य विषय का संकलन करने वाली
संग्रहणीय गाथाओं के लिए पद्यभाग का प्रयोग हुआ है जिसमें उस शतक के सभी उद्देशकों की सूचना दी गई है। प्रायः संग्रहणीय गाथा शतक के प्रारंभ में ही आई है परन्तु कहीं-कहीं गद्य के मध्य में भी गाथाएँ मिलती हैं।
ग्रन्थ-परिचय एवं व्याख्यासाहित्य
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