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________________ व्याख्याप्रज्ञप्ति के अन्त में उपसंहार में 'इक्कचत्तालीसइमं रासी जुम्मसयं समत्तं' पद प्राप्त होता है। समवायांगा व नन्दीसूत्र में अध्ययन शब्द का ही प्रयोग मिलता है। 'एगे साइरेगे अज्झयणसते' अर्थात् व्याख्याप्रज्ञप्ति में सौ से अधिक शतक हैं, किन्तु नंदी के चूर्णिकार” ने शत का अर्थ 'अध्ययन' से ही लिया है। भगवतीसूत्र में कई जगह 'शत' शब्द का ही प्रयोग हुआ है- जहा सक्कस्स वत्तव्वता ततियसते - (4.4) समवायांग व नंदी में व्याख्याप्रज्ञप्ति के विवरण में अध्ययन शब्द का प्रयोग तथा मूल आगम में शत शब्द का प्रयोग है, इसलिए शत को अध्ययन का पर्यायवाची माना गया है। रचनाकार व रचनाकाल भगवतीसूत्र का द्वादशांगी में पाँचवां स्थान है। सूत्ररूप में इसके रचनाकार गणधर सुधर्मा हैं। डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. जगदीश चन्द्र जैन आदि कई विद्वानों ने इसकी विषयवस्तु, महत्त्व आदि का उल्लेख किया है, परन्तु रचनाकार तथा रचनाकाल पर विशेष सामग्री प्रस्तुत नहीं की है। देवेन्द्र मुनि ने भी इस सम्बन्ध में यही लिखा है कि इसकी मूल रचना प्राचीन ही है। यह गणधरकृत ही है।18 भगवई खण्ड-13 में इसके प्रस्तुत संस्करण की रचना का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इसका प्रस्तुत संस्करण देवर्द्धिगणि की वाचना के समय का है। ई.पू. पाँच सौ से ईसवी सन् पाँच सौ तक के सूत्र इसमें मिलते हैं । गौतम द्वारा पूछे जाने पर कि भगवान् यह पूर्वगत श्रुत कब तक चलेगा? भगवान् महावीर द्वारा उत्तर दिया गया कि इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में मेरा पूर्वगत श्रुत एक हजार वर्ष तक रहेगा गोयमा! जंबुद्वीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अणुसज्जिस्सति - (20.8.10)। इस सूत्र का स्पष्टीकरण देते हुए आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भगवई 20 में कहा है कि यह सूत्र संकलनकालीन रचना है। भगवान् महावीर के प्रवचन में कहीं भी भविष्यवाणी नहीं है। यह सामयिक स्थिति का आकलन करने वाला सूत्र देवर्द्धिगणि की वाचना के समय जोड़ा गया प्रतीत होता है। समर्पणसूत्रों या निर्देश सूत्रों के अध्ययन से यही प्रमाणित होता है कि प्रस्तुत आगम में अनेक शताब्दियों की रचना का संकलन किया गया है। भगवतीसूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने वाले डॉ. जे.सी. सिकदर ने अपने शोध प्रबंधन में इस ग्रंथ के रचनाकाल पर आन्तरिक व बाह्य दोनों प्रकार के साक्ष्यों का विश्लेषण करते हुए यह निष्कर्ष दिया है कि इस ग्रंथ के कुछ संदर्भ यदि ईसा पूर्व ग्रन्थ-परिचय एवं व्याख्यासाहित्य 31
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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