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________________ बाद में इसका स्वतंत्र नाम बन गया। इस सम्बन्ध में मधुकर मुनि ने लिखा है'वीतराग सर्वज्ञ प्रभु की वाणी अद्भुत ज्ञाननिधि से परिपूर्ण है। जिस शास्त्र में अनन्तलब्धिनिधान गणधर गुरु श्री इन्द्रभूति गौतम तथा प्रसंगवश अन्य श्रमणों आदि द्वारा पूछे गये 36,000 प्रश्नों का श्रमण शिरोमणि भगवान् महावीर के श्रीमुख से दिये गये उत्तरों का संकलन-संग्रह है, उसके प्रति जनमानस में श्रद्धा-भक्ति और पूज्यता होना स्वाभाविक है। वीतरागप्रभु की वाणी में समग्र जीवन को पावन एवं परिवर्तित करने का अद्भुत सामर्थ्य है, वह एक प्रकार से भागवती शक्ति है, इसी कारण जब भी व्याख्याप्रज्ञप्ति का वाचन होता है तब गणधर भगवान् श्री गौतमस्वामी को सम्बोधित करके जिनेश्वर भगवान् महावीर प्रभु द्वारा व्यक्त किये गये उद्गारों को सुनते ही भावुक भक्तों का मन-मयूर श्रद्धा-भक्ति से गद्गद होकर नाच उठता है। श्रद्धालु भक्तगण इस शास्त्र के श्रवण को जीवन का अपूर्व अलभ्य लाभ मानते हैं। फलतः अन्य अंगों की अपेक्षा विशाल एवं अधिक पूज्य होने के कारण व्याख्याप्रज्ञप्ति के पूर्व 'भगवती' विशेषण प्रयुक्त होने लगा और शताधिक वर्षों से तो 'भगवती' शब्द विशेषण न रह कर स्वतंत्र नाम हो गया है। वर्तमान में व्याख्याप्रज्ञप्ति की अपेक्षा 'भगवती' नाम ही अधिक प्रचलित है।' आकार व्याख्याप्रज्ञप्ति विशालकाय आगम ग्रंथ है। समवायांगसूत्र व नन्दीसूत्र' में इसके प्राचीन आकार का उल्लेख प्राप्त होता है। समवायांग में इसका प्राचीन आकार इस प्रकार बताया गया है- 'व्याख्याप्रज्ञप्ति में एक श्रुतस्कन्ध है, सौ से कुछ अधिक अध्ययन हैं, दस हजार उद्देशक हैं, दस हजार समउद्देशक हैं, छत्तीस हजार प्रश्नों के उत्तर हैं। पद-गणना की अपेक्षा चौरासी हजार पद हैं। संख्यात अक्षर हैं, अनन्त गम हैं, अनन्त पर्याय हैं, परीत त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं। वाचनाएँ परीत हैं, अनुयोगद्वार संख्यात हैं, प्रतिपत्तियाँ संख्यात हैं। वेढ (छंद विशेष) संख्यात हैं, शोक संख्यात हैं और नियुक्तियाँ संख्यात हैं।' नन्दीसूत्र में भी व्याख्याप्रज्ञप्ति का प्राचीन आकार समवायांग सूत्र की तरह ही बताया गया है, किन्तु पदों की संख्या दो लाख अट्ठासी हजार बताई गई है। दिगम्बर परम्परा के ग्रंथ षटखंडागम, कषायपाहुड व राजवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत ग्रंथ में 60,000 प्रश्रों का व्याकरण है। आचार्य वीरसेन के अनुसार इस आगम में प्रश्नोत्तर के साथ-साथ 96,000 छिन्न-छेदक नयों से प्रज्ञापनीय शुभ व अशुभ का वर्णन है। जयधवला12 के अनुसार व्याख्याप्रज्ञप्ति में दो लाख अट्ठाइस हजार पद हैं। ग्रन्थ-परिचय एवं व्याख्यासाहित्य 29
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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