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________________ ग्रन्थ- परिचय एवं व्याख्यासाहित्य भगवान् महावीर की वाणी गणधरों द्वारा द्वादशांग में संकलित की गई है। यही कारण है कि समस्त जैन सिद्धान्तों का मूल आधार बारह अंग माने जाते हैं । इन बारह अंगों में से दृष्टिवाद के विच्छिन्न हो जाने के कारण वर्तमान में एकादश अंग शास्त्र ही उपलब्ध हैं । उपलब्ध ग्यारह अंगों में से पाँचवें अंग का प्राकृत नाम विआपत्ति है । इसका संस्कृत रूपान्तरण व्याख्याप्रज्ञप्ति है । प्रस्तुत आगम ग्रंथ में गौतम गणधर व प्रसंगवश अन्य श्रमणों और शिष्यों द्वारा पूछे गये 36,000 प्रश्नों का उत्तर श्रमणशिरोमणि भगवान् महावीर ने अपने श्रीमुख से दिया है। ज्ञान के अथाह सागर रूप इस ग्रंथ में प्राय: सभी विषयों से संबंधित प्रश्नोत्तर विवेचित हैं । ज्ञान के अगाध भण्डार से परिपूर्ण इस ग्रंथ को समस्त उपलब्ध आगम ग्रंथों में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया गया है। इसे शास्त्रराज कहकर सम्बोधित किया गया है। नामकरण प्रश्नोत्तर शैली में लिखा जाने वाला ग्रंथ व्याख्याप्रज्ञप्ति कहलाता है । 'व्याख्या' का अर्थ है 'विवेचन करना' तथा 'प्रज्ञप्ति' का अर्थ है 'समझाना' । अर्थात् जिसमें विवेचनपूर्वक तत्त्व को समझाया जाये, वह व्याख्याप्रज्ञप्ति कहा जाता है।' समवायांग' व नंदीसूत्र' में 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' व ' व्याख्या' ये दो नाम मिलते हैं । यहाँ 'व्याख्या' शब्द व्याख्याप्रज्ञप्ति का ही संक्षिप्तिकरण प्रतीत होता है । व्याख्याप्रज्ञप्ति का प्राकृत भाषा में नाम 'वियाहपण्णत्ति' है । व्याख्याप्रज्ञप्ति इसी का संस्कृत रूपान्तरण है तथा इसका लोकप्रचलित नाम भगवती (भगवई) है । इसके व्याख्याप्रज्ञाप्ति, व्याख्याप्रज्ञात्ति आदि नाम भी मिलते हैं । नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेवसूरि ने व्याख्याप्रज्ञप्ति की वृत्ति के प्रारंभ में व्याख्याप्रज्ञप्ति के भिन्न-भिन्न नामों की सटीक व्याख्या प्रस्तुत की है। वि + आ + ख्या + प्र + ज्ञप्ति व्याख्या - प्रज्ञप्ति ग्रन्थ-परिचय एवं व्याख्यासाहित्य 27
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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