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________________ ग्रहण करता है। ग्रंथ में आये कुछ उल्लेख पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मान्यता प्रदान करते हैं। प्रथम शतक में भव की अपेक्षा से ज्ञान, दर्शन व चारित्र की प्ररूपणा करते हुए कहा है कि ज्ञान व दर्शन दोनों इहभविक व परभविक हैं जबकि चारित्र, तप व संयम इहभविक ही हैं।52 अन्यत्र कर्मिता व संगिता (आसक्ति) को पुनर्जन्म का कारण माना है। वेदना जो वेदी जाय या अनुभव की जाय वेदना है। उदय प्राप्त कर्मों को भोगना वेदना है। भगवतीवृत्ति में कहा गया है कि वेदना कर्म की होती है अतः वेदना को (उदय प्राप्त) कर्म कहा गया है। भगवतीसूत्र में वेदना के तीन प्रकार बताये गये हैं- 1. शीत, 2. उष्ण, 3. शीतोष्णा (तिविहा वेदणा पण्णत्ता, तं जहा - सीता उसिणा सीतोसिणा - (10.2.5) वेदना की ग्रंथ में विस्तार से चर्चा की गई है। एवंभूत एवं अन-एवंभूत वेदना की चर्चा में कहा है कि जो जीव किये हुए पापकर्मों के अनुसार वेदना वेदते हैं, वे एवंभूत वेदना वेदते हैं तथा जो जीव किये हुए कर्मों से अन्यथा वेदना वेदते हैं, वे अनएवंभूत वेदना वेदते हैं।54 निर्जरा ____ निर्जरा का शाब्दिक अर्थ है, जर्जरित करना या झाड़ना। आत्मा से कर्म पुद्गलों को पृथक् करना या पृथक् हो जाना निर्जरा है। आत्मा की विशुद्ध अवस्था, जिसके कारण कर्मपुद्गल आत्मा से पृथक् हो जाते हैं भावनिर्जरा है तथा कर्मपुद्गलों का आत्मा से पृथक हो जाना द्रव्यनिर्जरा है। निर्जरा को मोक्ष प्राप्ति का हेतु बताते हुए कहा गया है कि पापकर्म संसार परिभ्रमण का कारण होने से दुःख रूप हैं और पापकर्मों की निर्जरा मोक्ष का हेतु होने से सुखरूप है। श्रमण व श्रावक दोनों ही की कर्म-निर्जरा को विवेचित करते हुए कहा है- वे तप व साधना द्वारा कर्म की निर्जरा करते हैं। श्रमणोपासक, तथारूप श्रमण व ब्राह्मण को दोषरहित अन्नपानी आदि से सत्कार करने पर श्रावक एकान्तरूप से निर्जरा करता है। ... निर्जरा के दो भेद हैं- सकामनिर्जरा और अकामनिर्जरा। कर्म का अपनी समय मर्यादा के अनुसार फल देकर आत्मा से पृथक् हो जाना सकाम निर्जरा है। तप आदि साधना द्वारा कर्मों की कालस्थिति परिपक्व होने से पहले ही प्रदेशोदय के द्वारा उन्हें भोगकर बलात् पृथक् करना अकाम निर्जरा है। इसमें फलोदय नहीं 288 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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