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________________ अणुव्रत अणु + व्रत, अर्थात् छोटेव्रत । अणुव्रत महाव्रत का लघु संस्करण है | श्रमण हिंसा, झूठ, चोरी आदि का पूर्ण त्याग करता है अतः वे महाव्रत कहलाते हैं । श्रावक जब उनका पालन सीमित रूप से करता है तो वे अणुव्रत कहलाते हैं । भगवतीसूत्र 20 में अणुव्रतों की संख्या पाँच मानी गई है । यथा 1. स्थूलप्राणातिपात से विरमण (अहिंसाअणुव्रत ) 2. स्थूलमृषावाद से विरमण (सत्याणुव्रत ) 3. स्थूलअदत्तादान से विरमण (अस्तेयाणुव्रत) 4. स्थूल मैथुन से विरमण (ब्रह्मचर्याणुव्रत) 5. स्थूल परिग्रह से विरमण (अपरिग्रह - अणुव्रत) अहिंसा अणुव्रत- जीवनपर्यन्त मन, वचन एवं काया से स्थूल प्राणातिपात न स्वयं करना न करवाना अहिंसा अणुव्रत है । 21 विवेकपूर्वक पूर्ण सावधानी रखने पर भी यदि किसी प्राणी की हिंसा हो जाय तो श्रावक के अहिंसा व्रत का भंग नहीं होता है । भगवतीसूत्र 22 में कहा गया है कि यदि किसी श्रावक ने वनस्पतिकाय या सकाय जीव की हिंसा का प्रत्याख्यान लिया है और पृथ्वी खोदते समय उससे किसी त्रस या वनस्पतिकाय की हत्या हो जाय तो उसका व्रत भंग नहीं होता है क्योंकि वह त्रस या वनस्पतिकाय जीव की हत्या के लिए प्रवृत नहीं था । 1 सत्य अणुव्रत - उपासकदशांग 23 में मृषावाद को असत्य कहा है । इस व्रत को धारण करने वाला श्रावक स्थूलमृषावाद का त्याग करता है । आचार्य समन्तभद्र 24 ने स्थूलमृषाविरमण को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि श्रावक स्थूल असत्य स्वयं न बोले, न दूसरों से बुलवावे, साथ ही ऐसा भाषण न करे जिससे दूसरों पर कष्टों का पहाड़ ही ढह जाय । स्थूल असत्य के पाँच मुख्य प्रकार बताये गये हैं25- 1. कन्या के संबंध में मिथ्या जानकारी देना, 2. गाय आदि के संबंध में असत्य बोलना, 3. भूमि के संबंध में झूठी जानकारी देना, 4. न्याय - धरोहर के संबंध में असत्य बोलना, 5. झूठी साक्षी देना । अस्तेय अणुव्रत - अस्तेय का साधारण अर्थ है चोरी न करना । उपासकदशांग 26 में अदत्तादान को चोरी कहा गया है। इसके लिए वहां ‘अदिण्णादाणं' शब्द आया है, जिसका सामान्य अर्थ है बिना दी गई वस्तु को ग्रहण करना । स्थूलअदत्तादान का दो करण व तीन योग से त्याग करना अस्तेय अणुव्रत कहलाता है। रत्नकरण्डक - श्रावकाचार 27 के अनुसार जो दूसरे की रखी श्रावकाचार 265
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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