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________________ 1. सामायिकसंयत- सामायिक-चारित्र को अंगीकार करने के पश्चात् चातुर्याम धर्म (चार महाव्रत से युक्त धर्म) का जो मन, वचन और काया से त्रिविध पालन करता है, वह सामायिक संयत कहलाता है। 2. छेदोपस्थापनीयसंयत- प्राचीन (पूर्व) पर्यायों का छेदन कर जो श्रमण अपनी आत्मा को पंचयाम (पाँच महाव्रत युक्त) धर्म में स्थापित करता है, वह छेदोपस्थापनीय-संयत कहलाता है। 3. परिहारविशुद्धिकसंयत- जो संयत पंचमहाव्रतरूप अनुत्तर धर्म का मन, वचन व काया से त्रिविध पालन करता हुआ, आत्म-विशुद्धि करने वाले तपश्चरण को धारण करता है, वह परिहारविशुद्धिकसंयत कहलाता है। 4. सूक्ष्मसम्परायसंयत- जो सूक्ष्म लोभ का वेदन करता हुआ (चारित्र मोहनीय कर्म) का उपशमक होता है या क्षय करने वाला होता है, वह सूक्ष्मसंपराय संयत होता है। वह यथाख्यातसंयत से कुछ हीन होता है। 5. यथाख्यातसंयत- मोहनीय कर्म के उपशांत या क्षीण हो जाने पर जो छद्मस्थ या जिन होता है, वह यथाख्यातसंयत कहलाता है। पच्चीसवें शतक के सातवें उद्देशक में इसके स्वरूप पर भिन्न-भिन्न दृष्टियों से विचार किया गया है। संदर्भ 1. व्या. सू., 8.10.3-18 2. वही,7.2.1 वही, 8.8.8,9 व्या. सू., 8.10.2 वही, 8.10.4,5-6 6. भगवतीवत्ति, पत्रांक,419-420 वही, 2.1.37,50 उत्तराध्ययन, 21.12 व्या. सू., 1.4.12, 7.8.1 10. उत्तराध्ययन, 24.1,3 व्या. सू., 2.1.37 12. स्थानांगसूत्र, मुनि मधुकर, 8.17, पृ. 633 13. उत्तराध्ययन, बृहद्वृत्ति, पृ. 514 14. 'सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः - तत्त्वार्थसूत्र, 9.4 15. व्या. सू., 2.1.37 16. मूलाराधना, (भाग-2) 6.1196 ---- 17. व्या.सू., 25.7.190 in & in on ooo श्रमणाचार 259
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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