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________________ उदरनिर्वाह के लिए मधुकर वृत्ति से गृहस्थ के घर में सहज भाव से निर्मित निर्दोष विधि से भिक्षा ग्रहण करते हैं, वह भिक्षा सर्वसम्मत्करी है। इस प्रकार की भिक्षा देने वाले के भी बहुत से कर्मों की निर्जरा होती है। भगवतीसूत्र में भिक्षाचर्या के औपपातिकसूत्र की तरह तीस प्रकार बताये हैं यथा- द्रव्याभिग्रहचरक भिक्षाचर्या, क्षेत्राभिग्रहचरक भिक्षाचर्या, शुद्धेषणीयक भिक्षाचर्या, संख्यादत्तिक भिक्षा आदि। भगवतीसूत्र में श्रमण की भिक्षाविधि का विवेचन करते हुए कहा गया है कि भिक्षाटन के निमित्त जाने वाला श्रमण ऊँच, नीच और मध्यम कुलों के गृहसमुदाय में भिक्षाचर्या की विधि से भिक्षा ग्रहण करता है। श्रमण की इस भिक्षावृत्ति के लिए ग्रंथों में 'गोयर' शब्द का प्रयोग हुआ है अर्थात् गाय की तरह भ्रमण करना। जिस तरह गाय एक किनारे से दूसरे किनारे तक बिना जड़ को उखाड़े घास चरती है वैसे ही श्रमण भी बिना गृहस्थ को कष्ट दिये भेद-भाव रहित सरस व निरस आहार को ग्रहण करता है। श्रमण की भिक्षा नौ विधियों से शुद्ध होती है। उत्तराध्ययनसूत्र42 में कहा गया है कि साधु भिक्षा द्वारा प्राप्त अन्न का सेवन करता है तथा वह भिक्षा अनिन्दित व अज्ञात घरों से थोड़ा-थोड़ा माँगकर लाई हुई होनी चाहिये। दशवैकालिक, मूलाचार आदि ग्रंथों में श्रमण की भिक्षाचर्या पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। अकल्पनीय आहार श्रमण यद्यपि भिक्षावृत्ति द्वारा आहार ग्रहण करता है परन्तु निम्न प्रतिकूल प्रकार का आहार उसके लिए कल्पने योग्य नहीं होता है। आधाकर्मिक- किसी खास साधु के लिए सचित्त वस्तु को अचित्त करना या अचित्त को पकाना। औद्देशिक- याचकों और साधुओं के उद्देश्य से आहारादि तैयार करना। मिश्रजात- अपने और साधुओं के लिए एक साथ पकाया हुआ आहार। अध्यवपूरक- साधुओं का आगमन देख अपने बनते हुए भोजन में और आहार मिला देना। पूतिकर्म- शुद्ध आहार में आधाकर्मादि का अंश मिल जाना। क्रीत- साधु के लिए खरीदा हुआ आहार। प्रामित्य- साधु के लिए उधार लिया हुआ आहारादि। अछेद्य- किसी से जबरन छीनकर साधु को आहारादि देना। अनिःसृष्ट- किसी वस्तु के एक से अधिक स्वामी होने पर सबकी इच्छा के बिना देना। 242 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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