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________________ साथ-साथ शील सम्पन्न अर्थात् आचारयुक्त है, वही सच्चा आराधक होता है। अर्थात् अकेले ज्ञान से व्यक्ति धर्म का विज्ञाता नहीं होता है ज्ञानवान के साथ जब शीलवान भी होता है तभी वह पापादि से उपरत, धर्म का विज्ञाता तथा सर्वआराधक कहलाता है। वस्तुतः ज्ञान, दर्शन और चारित्र साथ-साथ आगे बढ़ते हैं। जैन आचार संहिता का पालन इन तीनों की सम्मिलित आराधना द्वारा ही संभव है। भगवतीसूत्र में ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र आराधना के पुनः तीन-तीन प्रकार बताये गये हैं- 1. उत्कृष्ट, 2. मध्यम और 3. जघन्य। रत्नत्रय की उक्त त्रिविध आराधनाओं के उत्कृष्ट फल का विवेचन करते हुए भगवतीवृत्ति में कहा गया है कि उत्कृष्ट ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना वाले कतिपय साधक उसी भव में तथा कतिपय दो (बीच में एक देव और एक मनुष्य का) भव ग्रहण करके मोक्ष जाते हैं। कई जीव कल्पोपपन्न या कल्पातीत देवलोकों में, विशेषतः उत्कृष्ट चारित्राराधना वाले एकमात्र कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। मध्यम ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना वाले कई जीव जघन्य दो भव ग्रहण करके उत्कृष्टतः तीसरे भव में (बीच में दो भव देवों के करके) अवश्य मोक्ष जाते हैं। इसी तरह जघन्यतः ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करने वाले कतिपय जीव जघन्य तीसरे भव में, उत्कृष्टतः सात या आठ भवों में अवश्यमेव मोक्ष जाते हैं। ये सात भव देवसम्बन्धी और आठ भव चारित्रसम्बन्धी मनुष्य के समझने चाहिए। पंचमहाव्रत भगवतीसूत्र में श्रमणों के आचार वर्णन में पंचमहाव्रतों के स्वरूप का क्रमिक वर्णन नहीं मिलता है। पार्श्व के अनुयायियों द्वारा भगवान् महावीर के पास चातुर्याम धर्म के बदले पंचमहाव्रतात्मक धर्म को स्वीकार करने का वर्णन अवश्य हुआ है। स्कन्दक मुनि के प्रसंग में जितेन्द्रियव्रतों व श्रेष्ठ साधुव्रतों का उल्लेख हुआ है। इनका तात्पर्य संभवतः पंचमहाव्रतों से ही है। इसके अतिरिक्त स्कन्दकमुनि द्वारा संलेखनापूर्वक समाधि मरण के प्रसंग में पंचमहाव्रतों की आरोपणा का उल्लेख भी आता है। जैनागमों में पांच महाव्रतों के नाम इस प्रकार बताये गये 1. अहिंसा, 2. सत्य, 3. अचौर्य, 4. ब्रह्मचर्य, 5. अपरिग्रह ___ अहिंसा- मन-वचन-काय तथा कृत-कारित-अनुमोदना से किसी भी परिस्थिति में त्रस या स्थावर जीवों को दुःखी न करना अहिंसा-महाव्रत है। श्रमणाचार 231
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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