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परिचय
'भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन' नामक इस कृति की लेखिका डॉ० तारा डागा गत कई वर्षों से प्राकृत, अपभ्रंश जैसी प्राच्य भाषाओं के अध्ययन-अध्यापन से जुड़ी हुई हैं। भगवतीसूत्र जैसे गहन आगम ग्रन्थ पर आपने अपना शोध प्रबन्ध लिखकर 2003 में जैन विश्व भारती, लाडनूं से पीएच०डी० की उपाधि प्राप्त की। प्राकृत भाषा पर आयोजित अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय संगोष्ठियां में भी उनकी सहभागिता रही है। प्राकृत भाषा के अध्ययन को सरलीकृत बनाने में उनकी प्राकृत साहित्य की रूपरेखा, प्राकृत सुबोध पाठमाला, प्राकृत लर्निंग मैन्यूअल (अंग्रेजी अनुवाद) आदि कृतियों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। रचनात्मक लेखन के साथ-साथ प्राकृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में भी उनका कर्मठ योगदान रहा है।