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________________ द्रव्य को जीव-अजीव की पर्याय माना है। यह स्पष्ट रूप नहीं है। हमारे मत से यहाँ काल को जीव-अजीव की पर्याय कहना सूत्रकार का मन्तव्य नहीं प्रतीत होता है अपितु उनका मन्तव्य जीव व अजीव पर काल के प्रभाव को विवेचित करना है। जब काल जीव-द्रव्य के परिवर्तन में सहायक होता है उस दृष्टि से वह जीव रूप है तथा जब काल द्रव्य अजीव द्रव्यों के परिवर्तन में सहायक होता है तब उसे अजीव रूप स्वीकृत किया है। भगवतीसूत्र में काल की मान्यता व स्वरूप ___भगवतीसूत्र में काल के अस्तित्व को लेकर दोनों मान्यताएँ प्राप्त होती हैं। संभवतः उस समय काल के अस्तित्व को लेकर मतभेद था और उसी का प्रभाव है कि ग्रंथ में जब लोक का स्वरूप वर्णित किया गया है तब काल को सम्मिलित न करते हुए उसे पंचास्तिकाय रूप कहा गया है- गोयमा! पंचास्थिकाया एस णं एवतिए लोए त्ति पवुच्चइ, तं जहा- धम्मऽस्थिकाए, अधम्म्ऽथिकाए जाव पोग्गलऽस्थिकाए - (13.4.23) अर्थात् यह लोक पांच अस्तिकायों का समूह है; वे हैं धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय व जीवास्तिकाय। ग्रंथ में जहाँ सर्वद्रव्यों का प्रतिपादन किया गया है वहां द्रव्यों की संख्या छः बताई गई है- गोयमा! छव्विहा सव्वदव्वा पन्नता तं जहाधम्मत्थिकाये, अधम्मत्थिकाए जाव अद्धासमये - (25.4.8) अर्थात् सर्वद्रव्य छः प्रकार के हैं, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गगलास्तिकाय व अद्धासमय। __ यहाँ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि लोक की संरचना में जहाँ उसे पंचास्तिकाय रूप कहा है वहाँ काल-द्रव्य को सम्मिलित नहीं किया गया जबकि सर्वद्रव्यों की गणना करते समय काल-द्रव्य को स्वीकार किया है? इस प्रश्न का समाधान इस प्रकार दिया जा सकता है कि लोक की संरचना में जिन पाँचद्रव्यों का उल्लेख किया है, वे सभी द्रव्य अस्तिकाय हैं अर्थात् प्रदेशप्रचय हैं जबकि काल-द्रव्य अस्तिकाय नहीं है अतः पंचास्तिकायरूप लोक मान्यता में काल द्रव्य का उल्लेख नहीं किया गया है। जहाँ सर्वद्रव्य की बात कही वहाँ छः द्रव्यों में अद्धासमय को सम्मिलित कर द्रव्य रूप में मान्यता दी है। वस्तुतः द्रव्य का लक्षण सत् रूप कहा गया है, अर्थात् द्रव्य उत्पाद, व्यय व ध्रौव्यता युक्त है, काल भी द्रव्य है क्योंकि वह भी इन लक्षणों से युक्त है। काल में ध्रौव्य तो स्वप्रत्यय है ही क्योंकि वह स्वभाव में सदा व्यवस्थित रहता है। व्यय और उत्पाद अगुरुलघुगुणों की 148 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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