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उल्लेख नहीं है। किन्तु, जो द्रव्य वर्णादि गुणों से युक्त होगा उसका कोई आकार अवश्य ही होगा। उत्तराध्यययनसूत्र व तत्त्वार्थसूत्र' में भी पुद्गल की परिभाषा में उसे वर्णादि चार गुण वाला ही बताया गया है। किन्तु, पुद्गल के स्वभाव वर्णन में उसे स्पष्ट रूप से पाँच गुणों से युक्त बताया है। भगवतीसूत्र में भी पुद्गल परिणाम में संस्थान की चर्चा की गई है। संस्थान के छ: भेद बताये गये हैं171. परिमण्डल (चूडी की तरह गोल) 2. वृत (गेंद की तरह गोल) 3. व्यस्त (त्रिकोणाकार)
4. चतुस्त्र (चतुष्कोण) 5. आयत (लकड़ी के आकार का लम्बा) 6. अनिस्थंस्थ
(अनियत आकार का) आगे के सूत्र में संस्थान के पाँच प्रकार भी बताये हैं। वहां छठे संस्थान अनिस्थंस्थ का उल्लेख नहीं किया गया है। संभवत: अन्य आकारों का मिश्रण होने के कारण यहाँ उसका उल्लेख नहीं हुआ है। पुद्गल की अनन्तता
भगवतीसूत्र में पुद्गल द्रव्य को द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव दृष्टि से स्पष्ट करते हुए अनन्त माना है। द्रव्य की दृष्टि से परमाणु अनन्त हैं, द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध अनन्त हैं, अतः पुद्गल द्रव्य अनन्त हैं। क्षेत्र की दृष्टि से एक आकाश प्रदेश पर ठहरे हुए पुद्गल द्रव्य अनन्त हैं। काल की दृष्टि से एक समय की स्थिति वाले पुद्गल भी अनन्त हैं। पुद्गल के चार भेद
भगवतीसूत्र में रूपी-अजीवद्रव्य (पुद्गल) के चार प्रमुख भेद किये गये हैं। 1. स्कन्ध, 2. स्कन्धदेश, 3. स्कन्धप्रदेश, 4. परमाणु-पुद्गल स्कन्ध- अनेक परमाणुओं का पिण्ड स्कन्ध कहलाता है।
स्कन्धदेश- स्कन्ध के किसी कल्पित भाग को (जो उससे पृथक नहीं होता है) स्कन्ध देश कहते हैं।
स्कन्धप्रदेश- स्कन्ध के ऐसे सूक्ष्म अंश को जिसके और विभाग न हो सके स्कन्ध प्रदेश कहते हैं।
परमाणु- स्कन्ध से पृथक् हुए निरंश भाग को परमाणु कहते हैं।
उत्तराध्ययन में तथा पंचास्तिकाय में आचार्य कुंदकुंद ने पुद्गल के उक्त चार भेद किये हैं। किन्तु, नियमसार22 में कुंदकुंदाचार्य ने स्कन्ध के निम्न छ: भेद किये हैं।
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन