________________
जैन दर्शन में ‘पुद्गल' की संख्या अनंत मानी गई हैं ।' विश्व के छोटे-बड़े सभी दृश्य पदार्थों का समावेश पुद्गल द्रव्य के अन्तर्गत हो जाता है। पुद्गल द्रव्य एक ऐसा अनूठा द्रव्य है, जो जीव के सम्पर्क में आकर इस अद्भुत सृष्टि का निर्माण करता है। जीव या आत्मा पुद्गल का संसर्ग प्राप्त करके ही विभिन्न क्रियाकलाप करती है।' अर्थात् हमारे सामने जो प्रत्यक्ष दृश्यमान जगत है, वह मूर्तद्रव्य पुद्गल का ही परिणाम है।
यहाँ यह जानना अनिवार्य है कि पुद्गल द्रव्य का आकर्षण ही आत्मा को बन्धन में डालता है। पुद्गल के संयोग से आत्मा स्वभाव को छोड़कर विभाव में परिणत होती है। अतः आत्मा की मुक्ति के लिए यह पूर्णतः आवश्यक है कि पुद्गल द्रव्य (बंधन) को जाना जावे । पुद्गल द्रव्य के पूर्णज्ञान द्वारा ही आत्मा य के त्याग एवं उपादेय को ग्रहण करने में सक्षम होगा और इसी ज्ञान से वह अपने पूर्ण विकास (शुद्धात्मस्वरूप) के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा ।
पुद्गल का अर्थ एवं परिभाषा
-
पुद्गल शब्द जैन दर्शन का विशेष पारिभाषिक शब्द है, जो दो शब्दों के मेल से बना है। पुद्+गल। ‘पुद्' का अर्थ है; पूर्ण होना, मिलना या जुड़ना । 'गल' का अर्थ है; गलना, हटना या टूटना । अर्थात् जो द्रव्य निरंतर मिलता - गलता रहे, बनता - बिगड़ता रहे, टूटता जुड़ता रहे वह पुद्गल द्रव्य है पूरणगलनान्वर्थसंज्ञत्वात् पुद्गलाः - ( त. रा. वा. 5.1.24 ) । स्कन्ध की अवस्था में पुद्गल-परमाणु परस्पर मिलते या जुड़ते रहते हैं तथा स्कन्ध से परमाणु टूटकर अलग-अलग होते रहते हैं । अर्थात् इसमें टूट-फूट होती रहती है । इसे विज्ञान की भाषा में फ्युजन (टूटना) एवं फिजन (जुड़ना) कहा जा सकता है । छ: द्रव्यों में पुद्गल ही ऐसा द्रव्य है, जिसमें संश्लिष्ट व विश्लिष्ट होने की क्षमता है। अन्य पाँच द्रव्यों में नहीं ।
-
10
यह तो पुद्गल द्रव्य की व्युत्पत्तिमूलक परिभाषा हुई । गुणात्मक दृष्टि से भी जैनागमों में पुद्गल की परिभाषा प्राप्त होती है । उत्तराध्ययन' में पुद्गल की परिभाषा देते हुए शब्द, अंधकार, प्रकाश, प्रभा, छाया, वर्ण, रस, गंध, स्पर्शादि को पुद्गल के लक्षण माना है । प्रवचनसार " में आचार्य कुंदकुंद ने पुद्गल की गुणात्मक परिभाषा देते हुए कहा है कि सूक्ष्म परमाणु से लेकर महास्कंध पृथ्वी तक में पुद्गल के रूप, रस, गंध और स्पर्श ये चार गुण विद्यमान रहते हैं । तत्त्वार्थसूत्र में आचार्य उमास्वाति ने पुद्गल द्रव्य को स्पर्श, रस, गंध व वर्णयुक्त
रूपी - अजीवद्रव्य (पुद्गल)
117