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कल्पोत्पन्न वैमानिक देव- जो अभिष्ट फल देने वाले कल्पों में उत्पन्न होते हैं, वे कल्पोत्पन्न देव कहलाते हैं । कल्पों की संख्या बारह है । इस दृष्टि से इनमें उत्पन्न होने वाले देव भी बारह प्रकार के होते हैं
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1. सौधर्म, 2. ईशान, 3. सनत्कुमार, 4. माहेन्द्र, 5. ब्रह्म, 6. लान्तक, महाशुक्र, 8 सहस्त्रार, 9. आनत, 10. प्राणत, 11. आरण 12. अच्युत
कल्पातीत वैमानिक देव- कल्प के ऊपर रहने के कारण ये कल्पातीत वैमानिक देव कहे जाते हैं । ये दो प्रकार के हैं। 1. ग्रैवेयक, 2. अनुत्तर
ग्रैवेयक वैमानिक देव- जो पुण्यशाली जीव पुरुषाकार लोक के ग्रीवा स्थान पर निवास करते हैं उन्हें ग्रैवेयक कहते हैं । ये तीनों त्रिकों में विभक्त किये गये हैं। इनकी संख्या नौ बताई गई है
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1. अधस्तन - अधस्तन 2. अधस्तन - मध्यम, 3. अधस्तन - उपरिम, 4. मध्यमअधस्तन, 5. मध्यम-मध्यम, 6. मध्यम - उपरिम, 7. उपरिम- अधस्तन, 8. उपरिममध्यम, 9. उपरिम- उपरिम
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अनुत्तर वैमानिक देव- इनके ऐश्वर्य की तुलना किसी अन्य संसारी जीव के ऐश्वर्य से नहीं की जा सकती अतः ये अनुत्तर वैमानिक देव कहे जाते हैं । ये सबसे ऊपर निवास करते हैं । इनके ऊपर अन्य देवों का निवास नहीं है । इनके पांच भेद हैं- 1. विजय, 2. वैजयन्त, 3. जयन्त, 4. अपराजित, 5. सर्वार्थसिद्ध । इस देवलोक में उत्पन्न होने वाले जीव अगले भव में निश्चित रूप से मोक्ष पद को प्राप्त करते हैं।
जीव के पर्याप्तक व अपर्याप्तक दृष्टि से चौदह भेद 118
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पर्याप्तक व अपर्याप्तक जैन दर्शन के पारिभाषिक शब्द हैं। जन्म के प्रारंभ में जीवन-यापन के लिए आवश्यक पौद्गलिक शक्ति के निर्माण का नाम पर्याप्त है स्वयोग्य पर्याप्ति को जो पूर्ण कर लेता है वह पर्याप्तक है तथा जो पूर्ण न करे वह अपर्याप्तक है। एकेन्द्रिय जीव की चार पर्याप्तियाँ होती हैं- आहार, शरीर, इन्द्रिय व श्वासोच्छ्वास। विकलेन्द्रिय जीवों के और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के पाँच पर्याप्तियाँ होती हैं; उपरोक्त चार तथा भाषा । संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मन होने से छः पर्याप्तियाँ होती हैं। इस प्रकार जो एकेन्द्रिय जीव स्वयोग्य चारों पर्याप्तियों को पूर्ण कर लेता है वह पर्याप्तक कहलाता है तथा जो पूर्ण नहीं करता है वह अपर्याप्तक कहलाता है । इसी प्रकार द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूरा कर लेने पर पर्याप्तक तथा पूरा करने से पूर्व ही काल करने पर अपर्याप्तक श्रेणी में आते हैं। इस दृष्टि से संसारी जीव के चौदह भेद बताये गये हैं
जीव द्रव्य
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