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________________ • की विस्तृत व्याख्या की गई है। गौतम गणधर आदि शिष्यों द्वारा पूछे गये प्रश्नों की भगवान् महावीर द्वारा श्रेष्ठतम विधि से प्रज्ञापना या विशद विवेचन जिस ग्रन्थ में किया गया वह व्याख्याप्रज्ञप्ति कहलाया । व्याख्याप्रज्ञप्ति एक विशिष्ट आगम था, लोगों में इसके प्रति विशेष श्रद्धा व भक्ति थी, जिससे इस ग्रंथ के नाम के आगे भगवती विशेषण जुड़ गया जो बाद में इसका स्वतंत्र नाम बन गया। इस अध्याय में भगवतीसूत्र के आकार, रचनाकाल, शैली आदि पर भी चर्चा की गई है। ग्रन्थ के प्राचीन आकार के अनुसार इसमें 36000 प्रश्नों का व्याकरण (विवेचन ) था । किन्तु, वर्तमान में इसमें मुख्य रूप से 41 शतक प्राप्त होते हैं । अवान्तर शतक मिलाने से शतकों की संख्या 138 होती है तथा 1925 उद्देशक हैं। भगवतीसूत्र के सूत्ररूप में रचनाकार गणधर सुधर्मा ही हैं। किन्तु, भगवतीसूत्र ग्रंथ का वर्तमान स्वरूप अनेक शताब्दियों की रचनाओं का परिणाम है। अतः इस ग्रन्थ के रचनाकाल की अवधि ईसा पू. 500 से ईसा की छठी शती अर्थात् लगभग 1000 वर्ष की मानी गई है। रचनाशैली की दृष्टि से प्रस्तुत ग्रन्थ प्रश्नोत्तर शैली में लिखा गया है। इसकी रचनाशैली की एक अन्य विशेषता यह है कि इस ग्रन्थ में किसी भी विषय का विवेचन अन्य ग्रन्थों की तरह क्रमबद्ध या व्यवस्थित नहीं है । प्रश्नकर्त्ता के मन में जब भी कोई प्रश्न उठता वे भगवान् महावीर के पास उसका समाधान प्राप्त करने पहुँच जाते और गणधर सुधर्मा द्वारा उन प्रश्नोत्तरों को उसी क्रम में ग्रथित कर लिया गया। प्रस्तुत कृति के इस अध्याय में भगवतीसूत्र के व्याख्या - साहित्य का भी संक्षिप्त परिचय दिया गया है। भगवतीसूत्र मूल में ही इतना विस्तृत ग्रन्थ था कि इस पर व्याख्या - साहित्य कम ही लिखा गया । इस पर एक अति लघु चूर्णि तथा अभयदेवसूरिकृत संक्षिप्त वृत्ति प्राप्त होती है । 1 चतुर्थ अध्याय में भगवतीसूत्र में समाविष्ट विशालकाय विषयवस्तु का संक्षिप्तिकरण करने का प्रयास किया गया है । विषयवस्तु की दृष्टि से भगवतीसूत्र में प्रायः सभी विषयों से सम्बन्धित सामग्री प्राप्त होती है । नन्दीसूत्र में व्याख्याप्रज्ञप्ति का विषय-विवेचन करते हुए कहा गया है कि इसमें जीवों की, अजीवों की, स्वसमय, परसमय, स्वपरउभयसमय सिद्धान्तों की व्याख्या तथा लोकालोक का स्वरूप वर्णित है। वस्तुतः ये सभी विषय भगवतीसूत्र के विभिन्न शतकों में अक्रमबद्ध रूप से विवेचित हैं । प्रस्तुत कृति के इस अध्याय में भगवतीसूत्र के विभिन्न शतकों में प्रतिपादित अक्रमबद्ध विषयवस्तु को क्रमवार प्राक्कथन IX
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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