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________________ द्रव्य व पर्याय का सम्बन्ध जैन आगम साहित्य में कहीं द्रव्य से पर्याय को भिन्न तो कहीं द्रव्य से पर्याय को अभिन्न माना गया है। द्रव्य व पर्याय में कथंचितं अभेद है, क्योंकि उन दोनों में अव्यतिरेक पाया जाता है। द्रव्य और पर्याय कथंचित भिन्न भी है, क्योंकि द्रव्य और पर्यायों में परिणाम का भेद है। आप्तमीमांसा'5 में कहा है- द्रव्य में अनादि और अनंत रूप से परिणमन का प्रवाह है जबकि पर्यायों का परिणमन सादि और सांत है। द्रव्य शक्तिमान् है पर्याय शक्तिरूप, एक की द्रव्य संज्ञा है दूसरे की पर्याय संज्ञा है। द्रव्य एक है, पर्यायें अनेक हैं। द्रव्य का लक्षण अलग है, पर्याय का लक्षण अलग है। प्रयोजन भी दोनों के भिन्न हैं, क्योंकि द्रव्य अन्वयज्ञानादि कराता है जबकि पर्याय व्यतिरेक ज्ञान कराता है। द्रव्य त्रिलोकगोचर है, किन्तु पर्याय वर्तमानगोचर है। इन नाना कारणों से द्रव्य की भिन्नता भी है ओर अभिन्नता भी। द्रव्य व पर्याय की यह भेद व अभेद दृष्टि भगवतीसूत्र में कई जगह परिलक्षित होती है। भगवान महावीर व पार्श्वनाथ के शिष्यों के वार्तालाप के प्रसंग में यह विवेचित किया गया है कि आत्मा ही सामायिक है, आत्मा ही सामायिक का अर्थ है- आया णे अज्जो! सामाइए, आया णे अज्जो सामाइयस्य अट्ट - (1.9.21)। वस्तुतः आत्मा एक द्रव्य है व सामायिक उसकी एक अवस्था होने से पर्याय है, किन्तु आत्मा को ही सामायिक कहकर यहाँ पर्याय को द्रव्य से बिल्कुल अभिन्न रूप में स्वीकार किया गया है। भगवतीसूत्र का यह सूत्र द्रव्य व पर्याय की अभिन्नता को स्वीकार करता है। दूसरी जगह द्रव्य व पर्याय की भिन्नता को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि अस्थिर पर्यायों के नष्ट होने पर भी द्रव्य नष्ट नहीं होता है।" इस वाक्य में द्रव्य व पर्याय की भिन्नता स्पष्ट रूप से झलक रही है। द्रव्य व पर्याय सर्वथा अभिन्न होते तो पर्याय के नष्ट होने पर द्रव्य भी नष्ट हो जाता। भगवतीसूत्र में आत्मा को ज्ञान से भी अभिन्न माना है- आया सिय णाणे, सिय अन्नाणे, णाणे पुण नियमं आया -(12.10.10)। दर्शन व आत्मा में भी एकत्व को स्थापित किया गया है। आया नियमं दंसणे, दंसणे वि नियमं आया - (12.10.16)। ... इस प्रकार भगवतीसूत्र के उक्त सूत्रों में ज्ञान-दर्शन को आत्मा से अभिन्न मानकर द्रव्य व पर्याय का भेद समाप्त कर दिया गया है। किन्तु, ग्रंथ में आत्मा के आठ भेद भी किये गये हैं यथा- द्रव्यात्मा, कषायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा और वीर्यात्मा। यहाँ आत्मा के ये भेद द्रव्य व भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
SR No.023140
Book TitleBhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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