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________________ आगमकालीन धार्मिक एवं दार्शनिक विचार • 57 जा सकती है जहां कहा गया है कि भगवान के शरीर मात्र का परिग्रह बच रहा था। यह दिगम्बर के समान वेशधारी, उन्मत्त, बिखरे हुए केशों सहित आव्हनीय अग्नि को अपने में धारण करके प्रवजित हुए। वह जड़, अन्ध, मूक, बधिर, पिशाचोन्माद युक्त जैसे अवधूत वेश में लोगों के बुलाने पर भी मौनवृत्ति धारण किये हुए चुप रहते थे। सब ओर लटकते हुए अपने कुटिल, जटिल, कपिश केशों के भार सहित अवधूत और मलिन शरीर से वह ऐसे दिखाई देते थे मानो उन्हें भूत लगा हो।103 ___ यथार्थत: यदि ऋग्वेद के उक्त केशी सम्बन्धी सूक्त को तथा भागवतपुराण में चित्रित ऋषभदेव के चरित्र को सन्मुख रखकर पढ़ा जाये तो ऐसा प्रतीत होता है कि भागवतपुराण ऋग्वेद का भाष्य हो। वही वातरशना या गगन परिधान वृत्ति केश धारण, कपिशवर्ण, मलधारण, मौन और उन्माद भाव समान रूप से दोनों में वर्णित हैं। ऋषभ भगवान के कुटिल केशों की परम्परा जैन मूर्तिकला में प्राचीनतम काल से आज तक अक्षुण्ण पाई जाती है। यथार्थत: समस्त तीर्थंकरों में केवल ऋषभ की ही मूर्तियों के सिर पर कुटिल केशों का रूप दिखाया जाता है और यही उनका प्राचीन विशेष लक्षण भी माना जाता है। केसर, केश और जटा एक ही अर्थ के वाचक हैं। सिंह भी अपने केशों के कारण केसरी कहलाता है। इस प्रकार केशी और केशरी एक ही केसरिया नाथ या ऋषभदेव के वाचक प्रतीत होते हैं। जैन पुराणों।04 में भी ऋषभ को जटाजूट ही बताया गया है। इस प्रकार ऋग्वेद के केशी और वातरशना मुनि तथा भागवतपुराण के ऋषभ और वातरशना श्रमण ऋषि तथा आदितीर्थंकर केसरियानाथ ऋषभ और उनका निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय एक ही प्रतीत होते हैं। केशी और ऋषभ का एक साथ उल्लेख ऋग्वेद में एक स्थान पर आया है - ककर्दवे वृषभो युक्त आसीद्, अवाव चीत् सारथिरस्य केशी। दुधर्युक्तस्यद्रव्रतः सहानस, ऋच्छन्ति मा निष्पदों मुद्गलानीम्।।105 मुद्गल ऋषि की गायों को चोर चुरा ले गये थे। उन्हें लौटाने के लिए ऋषि ने केशी ऋषभ को अपना सारथी बनाया, जिसके वचन मात्र से वह गौएं आगे को न भागकर पीछे को लौट पड़ी। ___ सायणाचार्य ने इसका वाक्यार्थ किया है-अस्य सारथिः सहायभूत: केशी प्रकृष्टकेशो वृषभ: अवावचीत म्रशमशब्दयत् इत्यादि। किन्तु डा० हीरालाल जैन इसका अर्थ दार्शनिक सन्दर्भ में इस प्रकार करते हैं- मुद्गल ऋषि के सारथी विद्वान नेता केशी वृषभ जो शत्रुओं का विनाश करने के लिए नियुक्त थे, उनकी वाणी निकली। जिसके फलस्वरूप जो मुद्गल ऋषि
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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