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________________ जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन • 33 जैनागमों के वस्तुत: प्राचीन ग्रन्थ आचारांग, सूत्रकृतांग तथा उत्तराध्ययन हैं, क्योंकि इनमें अध्यात्मिक तथा दार्शनिक व्याख्याएं विरली ही मिलती हैं जैसा कि परवर्ती आगमों के गद्य भाग में मिलती हैं।।66 डा० विन्टरनित्स का कहना है कि वर्तमान उत्तराध्ययन अनेक प्रकरणों का एक संकलन है और वे विभिन्न प्रकरण विभिन्न समयों में रचे गये थे।।67 उनकी मान्यता है कि उत्तराध्ययन के प्रथम तेईस अध्याय बाद के अध्यायों की नींव हैं।168 प्रस्तुत आगम के वर्णन को देखते हुए ऐसा लगता है कि स्थविरों ने इसका बाद में संग्रह किया है। कुछ अध्ययन ऐसे हैं जिनमें प्रत्येक बुद्ध एवं अन्य विशिष्ट श्रमणों के द्वारा दिये गये उपदेश एवं संवाद का संग्रह है। आचार्य भद्रबाहु ने इस बात को स्वीकार किया है कि इसके कुछ अध्ययन अंग साहित्य से लिए गये हैं, कुछ जिन भाषित हैं और कुछ प्रत्येक बुद्धश्रमणों के सम्वाद रूप में हैं। उसका प्राचीनतम भाग वे मूल्यवान पद्य हैं जो प्राचीन भारत की श्रमण काव्य शैली से सम्बन्धित है और जिनके सदृश पद्य अंशत: बौद्ध साहित्य 69 में भी पाये जाते हैं। ये पद्य हमें बलात् सुत्तनिपात के पद्यों का स्मरण करा देते हैं। विनय नामक प्रथम अध्ययन में बुद्ध शब्द आता है यथा कठोर अथवा मिष्ट वचन से जो मुझे शिक्षा देते हैं अपना लाभ मानकर उसे प्रयत्नपूर्वक सुनना चाहिए।।70 परीषह नामक दूसरा अध्ययन-सूयं में आउसं। तेण भगवया एवमकसायं, वाक्य से आरम्भ होता है। इसमें बाईस परीषहों का कथन पद्य में है। तृण परीषह का वर्णन करते हुए लिखा है कि। अचेल, रुक्ष, तपस्वी, संयमी तृणों पर सोता है। अत: उसका शरीर विर्दीण होता है तथा घाम का भी कष्ट होता है। किन्तु तृण परीषह से पीड़ित होने पर भी साधु वस्त्र ग्रहण नहीं करते। ___ तीसरे चतुरंगीय अध्ययन में चार वस्तुओं को उत्तरोत्तर दुर्लभ बतलाया है। प्रथम नरजन्म, दूसरे धर्मश्रवण, तीसरे श्रद्धा और चौथे अपनी शक्ति को संयम से लगाना। चौथे, असंस्कृत नामक अध्ययन में कहा है कि जीवन असंस्करणीय है। इसे बढ़ाया नहीं जा सकता और वृद्धावस्था आने पर रक्षा का कोई उपाय नहीं है। अत: प्रमाद मत करो। पांचवें, अकाममरण नामक अध्ययन में अकाममरण और सकाममरण का वर्णन है। छठे क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय नामक अध्ययन में साधु के सामान्य आचार का कथन है। अन्तिम वाक्य में कहा कि अनुचर ज्ञान दर्शन के धरी ज्ञातृ पुत्र भगवान वैशालिक (विशाला के पुत्र) महावीर ने ऐसा कहा।172 सातवें, औरथ्रीय नामक अध्ययन में पांच दृष्टान्तों द्वारा निर्ग्रन्थों का उद्बोधन
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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