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________________ जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन • 29 हयं नावां कियाहीणं, इया अण्णाणो किया। पासंतो पंगुलो दड्ढो, घावमाणो अ अंध ओ।। अर्थात् क्रिया से रहित ज्ञान निष्फल है और ज्ञान रहित क्रिया भी अर्थ साधिका नहीं होती है। जिस प्रकार जंगल में दावानल लगने पर पंगु देखता हुआ भी चलने में असमर्थ होने से तथा दृष्टिवान पंगु होने के कारण चल जाता है। यदि दोनों समझौता कर लें तो दावानल से बचकर सुरक्षित स्थान पर पहुंच सकते हैं। कहा गया है-ज्ञानक्रियाभ्याम् मोक्षः।। द्वितीयादि उद्देश्य में आत्मा के अस्तित्व का सुन्दर निरूपण किया है। आत्मा का अपलाप करने वाले चार्वाक दर्शन का सुन्दर युक्तियों से खण्डन करके आत्मा की सिद्धि की गयी है। आत्मा-द्वैतवाद, तज्जीवतच्छरीरवाद, आकारकवाद का उल्लेख करके विविध तर्कों द्वारा इनका युक्तियुक्त खण्डन किया गया है। बौद्ध दर्शन के एकान्तवाद, क्षणिकवाद, नियतिवाद, क्रियावाद, जगतकर्तत्ववाद और त्रैराशिक मत इत्यादि का उल्लेख करके इनका खण्डन किया गया है। प्रथम श्रुतस्कन्ध प्रथम श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन हैं। शीलांक ने इसे संस्कृत में गाथा-षोडषक नाम दिया है। 59 पहला समयाख्य अध्ययन है। इसमें स्वमत और परमत का वर्णन है। इसमें पंचमहाभूतवादी, आत्माद्वैतवादी, तज्जीव-तच्छारीरवादी आत्मा और शरीर को एक मानने वाले, अक्रियावादी, आत्म-षष्टवादी, क्षणिकवादी, विनयवादी, नियतिवादी, लोकवादी आदि परमत मतान्तरों के सैद्धान्तिक एवं आचार सम्बन्धी दोषों एवं भूलों को बताकर अपने सिद्धान्त की प्ररूपणा की है। दूसरा वैतालिय अध्ययन है। इसमें हितप्रद और अहितप्रद मार्ग बताया गया है। साधक को हिंसा आदि दोषों से युक्त मार्ग और कषाय भाव का त्याग करके शुद्ध संयम की साधना करनी चाहिए। “संबुज्मड़ किं न बुज्झइ समझो, क्यों नहीं समझते हो" कह कर जीवों को बड़ा मार्मिक उपदेश दिया गया है। भगवान ऋषभदेव के अट्ठानवें पुत्र अपने ज्येष्ठभाई भरत द्वारा उपेक्षा किये जाने पर भगवान की शरण में गये तब आदिनाथ भगवान ने उनको जो उपदेश दिया वह यहां संकलित है। इस अध्ययन में विषय भोगों की असारता का मार्मिक चित्रण करके अहंकार के परित्याग का उपदेश दिया गया है। संसार का राज्य वैभव वाणरूप नहीं है। केवल सर्द्धम की शरण ही त्राणरूप है। यही इस अध्ययन का सार तीसरे अध्ययन का नाम उपसर्गपरिज्ञा है। इसमें यह उपदेश दिया गया है कि
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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