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________________ अंग 22 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति द्वादश अंग और उपांग साहित्य का विवरण उपांग अंग औपपातिक जीवाभिगम 1. आचारांग 3. स्थानांग 4. भगवती 7. उपासक दशांग जम्बूदीप प्रज्ञप्ति चन्द्र प्रज्ञप्ति 9. अनुत्तरोपपातिक कल्पावतन्सिका 11. विपाक पुष्पचूलिका उपांग 2. सूत्रकृतांग राजप्रश्नीय 4. समवायांग प्रज्ञापना 6. ज्ञातधर्मकथा 8. अंतकृद्दशांग 10. प्रश्नव्याकरण 12. दृष्टिवाद सूर्यप्रज्ञप्ति कल्पिका पुष्पिका वृष्णिदशा छेय संज्ञा कब से प्रचलित हुई और इसमें कौन से शास्त्र सम्मिलित थे यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। आवश्यक नियुक्ति में सर्वप्रथम छेय शब्द मिलता है। 24 कुछ आचार्य छेय सूत्रों की संख्या चार मानते हैं - 1. निशीथ, 2. महानिशीथ, 3. व्यवहार और 4. दशाश्रुत स्कंध । कुछ आचार्य महानिशीथ और जीतकल्प को मिलाकर छेय सूत्रों की संख्या छः मानते हैं और कुछ जीतकल्प के स्थान पर पंच कल्प को छेय सूत्र मानते हैं। विन्टरनित्स के अनुसार छेय सूत्रों में से केवल कल्प अपने पूरक व्यवहार तथा आधारदंशाओ के साथ आरम्भिक समझा जा सकता है। 125 आधारदंशाओ का आठवां भाग भद्रबाहु कृत कल्पसूत्र है जो कि विभिन्न अंगों से निर्मित ग्रन्थ है तथा उसमें सबसे रूचिकर विभाग जो कि महावीर के जीवन चरित से सम्बन्धित है अपनी शैली के कारण प्रारम्भिक नहीं कहा जा सकता । 126 मूलसूत्रों की संख्या में भी एकरूपता नहीं है। कुछ आचार्य चार मूल सूत्र मानते हैं—1. दशवैकालिक, 2. उत्तराध्ययन, 3. नन्दी और 4. अनुयोग द्वार। कुछ विद्वान आवश्यक और ओघ नियुक्ति को भी मूल सूत्रों में सम्मिलित करके उनकी संख्या छ: मानते हैं। कुछ ओघ नियुक्ति के स्थान पर पिण्ड नियुक्ति को मूल सूत्र मानते हैं। बहुत से आचार्य नन्दी और अनुयोग द्वार को मूल सूत्र नहीं मानते। उनकी दृष्टि में ये दोनों चूलिका सूत्र हैं। इस तरह अंग बाह्य आगमों का विभिन्न समयों और रूपों में वर्गीकरण होता रहा है। नन्दीसूत्र की रचना देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने की। इसमें आगम साहित्य का परिचय दिया गया है। नन्दीसूत्र में आगम साहित्य की सूची दी गयी है।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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